दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश और मानवाधिकार के पैरोकार जस्टिस राजिंदर सच्चर अब हमारे बीच नहीं हैं। 94 साल की उम्र में शुक्रवार (20 अप्रैल) को उनका निधन हो गया। जस्टिस सच्चर को भारत के मुस्लिम समुदाय की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति के बारे में विस्तृत रिपोर्ट के लिए याद रखा जाएगा।

बीस दिसबंर 1923 को लाहौर में जन्मे जस्टिस राजिंदर सच्चर ने लाहौर से वकालत की पढ़ाई की और 1952 में शिमला से वकालत की शुरुआत की और 1960 में वह सुप्रीम कोर्ट में वकालत करने लगे।  पहली बार वह चर्चा में तब आए जब उन्होंने पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरो के खिलाफ प्रजातंत्र पार्टी को सहयोग देने का एलान किया। वह 1970 में पहली बार दिल्ली हाईकोर्ट में जज नियुक्त हुए। 1975 में उन्हें सिक्किम हाईकोर्ट का कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया। 1976 में जस्टिस सच्चर को राजस्थान हाईकोर्ट का जज बनाया गया। उन्होंने इस नियुक्ति का विरोध किया क्योंकि उनसे पूछे बिना ही उन्हें राजस्थान भेजा गया था।

राजिंदर सच्चर को मानवाधिकार के बड़े पैरोकार के तौर पर देखा जाता था। 2005 में जस्टिस सच्चर की अध्यक्षता में एक कमेटी बनी जिसने भारत में मुसलमानों की सामाजिक-आर्थिक और शैक्षणिक दशा आकलन कर विस्तृत रिपोर्ट तैयार की। ये रिपोर्ट भारत में मुसलमान समुदाय की सामाजिक-आर्थिक हालत की सबसे प्रमाणिक दस्तावेज बन चुकी है जिसका जिक्र भारतीय मुसलामानों से सम्बंधित हर दस्तावेज के सन्दर्भ में अनिवार्य रूप से किया जाता है। 403 पेज की इस रिपोर्ट में कहा गया कि भारतीय मुसलमानों की स्थिति अनुसूचित जाति-जनजाति से भी खराब है।

जस्टिस सच्चर बेखौफ अपनी राय रखने के लिए भी मशहूर थे और कई बार वह अपने बयानों की वजह से विवादों में आए। 2015 में दादरी में बीफ खाने के आरोप में एक व्यक्ति की हत्या के बाद उन्होंने कहा था कि ‘देश में बीफ का बिजनेस करने वाले 95 प्रतिशत लोग हिंदू हैं। खान-पान की आदतों का धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने यह भी कहा था कि 2019 में आरएसएस देश को हिन्दू राष्ट्र घोषित करवाएगा। जस्टिस राजिंदर सच्चर संयुक्त राष्ट्र में मानव अधिकारों के संवर्धन और संरक्षण के उप-आयोग के सदस्‍य भी रहे थे।

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