बॉम्बे हाई कोर्ट ने मंगलवार (13 फरवरी) को बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) से एक मामले पर जवाब मांगा है। मामला बर्थ सर्टिफिकेट पर जैविक पिता का नाम ना दर्ज करवाने को लेकर है। दरअसल 31 वर्षीय एक महिला ने बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की है जिसमें वह चाहती हैं कि नगर निगम के अधिकारी उन्हें बर्थ सर्टिफिकेट पर अपनी बेटी के जैविक पिता का नाम दर्ज करने के लिए बाध्य ना करें। इसी याचिका पर जस्टिस ए एस ओका और जस्टिस पी एन देशमुख की बेंच ने बीएमसी को दो सप्ताह के भीतर जवाब दायर करने का निर्देश दिया है।

याचिकाकर्ता मुंबई के नालासोपारा की रहने वाली एक अविवाहित मां हैं। अगस्त 2016 में इस महिला ने टेस्ट ट्यूब तकनीक के जरिए एक लड़की को जन्म दिया। बच्ची के जन्म के बाद महिला ने बच्ची के जन्म प्रमाण पत्र के लिए आवेदन किया और बीएसमसी के बर्थ रजिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट से बच्चे के बर्थ सर्टिफिकेट में पिता के नाम का स्थान खाली रखने की अनुमति देने का आग्रह किया। बीएमसी ने महिला के इस आग्रह को मानने से इनकार कर दिया। इसके बाद महिला ने बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिका दाकिल की। हाई कोर्ट ने याचिका पर पिछले साल दिसंबर में बीएमसी को नोटिस जारी किया था लेकिन बीएसमसी  ने उसका जवाब अभी तक नहीं दिया।

याचिकाकर्ता ने अदालत के 2015 के उस फैसले का भी जिक्र किया है जिसमें कोर्ट ने कहा था कि सिंगल मदर को अपने बच्चे के बर्थ सर्टिफिकेट में बच्चे के जैविक पिता का नाम का लिखवाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।

इस बीच जैविक पिता के नाम को लेकर एक अन्य मामले में कोर्ट ने बच्चे के जैविक पिता को अदालत में बुलाया है। नवंबर 2013 में बच्चे को जन्म देने वाली 22 वर्षीय अविवाहित मां ने अपनी याचिका में बच्चे के बर्थ सर्टिफिकेट से बच्चे के जैविक पता का नाम हटाने की उसे अनुमति देने की मांग की है। इस मामले में भी बीएमसी ने ऐसा करने से इंकार किया और कहा कि राज्य के नियम के मुताबिक नगर निगम एक जन्म या मृत्यू प्रमाणपत्र में तभी संशोधन कर सकता है जब इसमें कोई गलती हो।

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