दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय में बच्चियों के खतने की प्रथा पर रोक लगाने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में लगातार दूसरे दिन आज सुनवाई होगी। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इस पर सुनवाई करते हुए कई सवाल उठाए। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा, “यह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है क्योंकि इसमें बच्ची का खतना कर उसको आघात पहुंचाया जाता है।”
सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक बताते हुए कहा कि महिलाओं का खतना सिर्फ इसलिए नहीं कर सकते कि उन्हें शादी करनी है। उनका जीवन सिर्फ शादी और पति के लिए नहीं होता।
महिलाओं के खतने पर पूर्ण पाबंदी की मांग से जुड़ी याचिका पर सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा, “जब हम महिला अधिकारों को बढ़ावा देने पर मुखर हैं तो इसे विपरीत दिशा में कैसे जाने दे सकते हैं?’ कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 और 15 नागरिकों को जीवन की सुरक्षा, निजी स्वतंत्रता के साथ-साथ धर्म, जाति, नस्ल, लिंग इत्यादि के आधार पर भेदभाव से सुरक्षा प्रदान करते हैं। महिला को पुरुष के लिए तैयार करने के मकसद से खतना किया जाता है, जैसे वह जानवर हो। महिलाओं के कई दायित्व हैं।
अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल ने कहा कि यह प्रथा आईपीसी और पॉक्सो एक्ट के तहत अपराध है। 42 देश इस पर रोक लगा चुके हैं, जिनमें से 27 अफ्रीकी हैं।
वहीं, एक याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट इंदिरा जयसिंह ने कहा कि किसी आपराधिक कृत्य की इजाजत सिर्फ इसलिए नहीं दे सकते कि वह प्रथा है।