सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर कोई किसी को अपने वाहन में लिफ्ट देता है और बाद में उस व्यक्ति के साथ लूटपाट हो जाती है और उसके वहान को छीन लिया जाता है तो ऐसे मामले में बीमा कंपनी पीड़ित को क्लेम देने से इंकार नहीं कर सकती है।

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने शुक्रवार को नेशनल इंश्योरेंस कंपनी की दलीलों को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि अगर लिफ्ट लेने वाला रास्ते में मदद करने वाले के साथ लूटपाट करता है और उसका वाहन छीन लेता है तो इसे किसी भी नियम या कानून के तहत गलत करार नहीं दिया जा सकता और इस आधार पर कोई बीमा कंपनी वाहन मालिक को क्लेम देने से इनकार नहीं कर सकती। साथ ही बेंच ने यह भी कहा है कि किसी राहगीर को लिफ्ट देना मानवता का हिस्सा है। ऐसा करना बीमा पॉलिसी का ऐसा उल्लंघन नहीं है कि बीमा को ही निरस्त कर दिया जाए।

बेंच ने बीमा कंपनी को 7 लाख 28 हज़ार की बीमा राशि का 75 प्रतिशत, 9 फीसदी ब्याज़ के साथ ट्रक मालिक को देने का आदेश दिया है। साथ ही पीठ ने बीमा कंपनी को कहा कि वह ट्रक मालिक को एक लाख रुपये का मुआवजा भी दे।

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने मंजीत सिंह नाम के शख्स द्वारा दायर की गई याचिका पर यह फैसला दिया। दरअसल सन 2003 में मंजीत सिंह ने एक ट्रक खरीदा था, 12 दिसंबर 2004 को ड्राइवर ट्रक को लेकर करनाल के पास नेशनल हाइवे से जा रहा था। इसी दौरान उसने तीन लोगों को लिफ्ट दी लेकिन वही लोग ड्राइवर के साथ मारपीट कर ट्रक लूटकर फरार हो गए। बीमा कंपनी ने मंजीत सिंह को बीमा का पैसा देने से इंकार कर दिया, कंपनी का कहना था कि इस तरह से लिफ्ट देकर बीमा पॉलिसी के नियमों का उल्लंघन किया गया है। कोर्ट ने बीमा कंपनी की इस दलील को नहीं माना और कंपनी को ट्रक मालिक को बीमा राशी देने का आदेश दिया।

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