सुप्रीम कोर्ट ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बड़ी राहत दी है और उनके सीएम के पद से अयोग्य घोषित करने की मांग वाली याचिका को सोमवार (19 मार्च) को खारिज कर दिया। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड की बेंच ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि कोर्ट ने इसमें कोई मेरिट नहीं पाई है।

याचिका वकील एम एल शर्मा ने नीतीश कुमार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट  में दाखिल की थी। याचिका में कहा गया है कि वर्ष 2006 और 2015 में नीतीश कुमार ने अपने चुनावी हलफनामे में यह खुलासा नहीं किया कि 1991 में उन पर हत्या के मामले में एक एफआईआर दर्ज हुई थी। याचिकाकर्ता ने कहा है कि इस आधार पर नीतीश कुमार को बिहार के सीएम के पद के अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए।

वकील मनोहर लाल शर्मा कि याचिका पर जवाब दाखिल करते हुए चुनाव आयोग ने कहा था कि याचिका में दी गई जानकारी गुमराह करने वाली है और यह अदालती प्रक्रिया का दुरुपयोग है। यह गलत तथ्यों पर आधारित है। याचिका सुनवाई योग्य नहीं नहीं है और भारी जुर्माना लगाकर इसे खारिज किया जाना चाहिए।

चुनाव आयोग ने अपने हलफनामे मे कहा है कि नीतीश कुमार ने 2012 और 2015 में बिहार विधानसभा का चुनाव नहीं लडा था तो चुनावी हलफनामा दाखिल करने का सवाल ही नहीं है। इसी तरह उन्होंने 2013 में भी बिहार विधान परिषद का चुनाव नहीं लडा फिर याचिकाकर्ता एम एल शर्मा ने कहां से नीतीश कुमार के चुनावी हलफनामे हासिल किए। चुनाव आयोग के मुताबिक इस मामले से याचिकाकर्ता के किसी मौलिक अधिकार का हनन नहीं हुआ है और जनहित याचिका दाखिल नहीं की जा सकती। याचिकाकर्ता को जनप्रतिनिधि अधिनियम के प्रावधान 125 के तहत चुनाव आयोग आना चाहिए था या इसकी शिकायत पुलिस को करनी चाहिए थी।

23 अक्तूबर 2017 को नीतीश कुमार को बिहार सीएम के पद से अयोग्य घोषित करने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई को तैयार हो गया था।

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