सांसदों और विधायकों को बतौर वकील प्रैक्टिस करने से रोकने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल से सलाह मांगी है। बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा है कि देश का कोई भी नागरिक जब तक सांसद या विधायक जैसे पद पर है तब तक उसकी वकील के रूप में प्रैक्टिस पर पाबंदी लगा देनी चाहिए। पद की शपथ लेते ही उसका लाइसेंस तब तक सस्पेंड कर देना चाहिए जब तक वो सांसद या विधायक है। पदमुक्त होने या इस्तीफा देने के बाद वो काउंसिल से फिर लाइसेंस वैध करने को कह सकता है।

याचिका में कहा गया है कि संसद-विधायक कानून बनाने वाले कॉर्पोरेट घरानों के लिए वकालत करते हैं, यह हितों के टकराव का मामला है। 12 मार्च को मामले की अगली सुनवाई होगी। इससे पहले अश्विनी उपाध्याय ने बार काउंसिल से भी ये मांग की थी। अश्विनी उपाध्याय ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया को पत्र लिखा था कि वो विधायकों और सांसदों को वकील के तौर पर कोर्ट में प्रैक्टिस करने से रोकें जिसके बाद ही BCI ने मामले पर विचार के लिए कमेटी गठित की थी। पत्र में यह भी कहा गया है कि कार्यपालिका और न्यायपालिका के सदस्यों को एक वकील के रूप में प्रैक्टिस की अनुमति नहीं है, लेकिन जनप्रतिनिधियों, जो एक सार्वजनिक सेवक भी हैं को यह अनुमति है। यह संविधन के अनुच्छेद 14-15 के खिलाफ है।

हालांकि इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि मार्च 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि अधिवक्ता अधिनियम और बार काउंसिल के नियमों के मुताबिक, वकील जो सांसद और विधायक बन गए हैं, वह अदालत में अपनी प्रैक्टिस जारी रख सकते हैं। अदालत ने यह भी कहा था कि भले ही इन सांसदों और विधायकों को वेतन और दूसरी सुविधाएं मिलती हैं लेकिन यह इन्हें वकील के तौर पर प्रैक्टिस से नहीं रोकती हैं। उस समय सुप्रीम कोर्ट ने इस दावे को खारिज कर दिया था कि विधायकों और सांसदों को भी दूसरे पूर्णकालिक कर्मचारियों की तरह प्रैक्टिस करने से रोका जाना चाहिए। रोक सिर्फ तब है जब कोई सांसद या विधायक मंत्री बन जाता है।

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