क्यों ‘नोटबंदी’ के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने बताया वैधानिक? जानें सुनवाई के दौरान क्या कुछ हुआ…

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Demonetisation verdict
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Demonetisation Verdict: 8 नवंबर 2016 का वो दिन जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में 500 और 1000 रुपये के नोट को बैन कर दिया था। जिसके बाद केंद्र सरकार के इस फैसले को साल 2016 में ही चुनौती दी गई थी। इस फैसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में आज यानी 2 जनवरी को 58 याचिकाओं को रद्द कर दिया गया है। बता दें कि न्यायमूर्ति एस. ए. नजीर की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाते हुए नोटबंदी को वैधानिक भी करार दिया है।

Demonetisation verdict: सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई की 5 बड़ी बातें….

1- 58 याचिकाओं में क्या कहा गया?- याचिकाओं ने तर्क दिया था कि इस फैसले को लेकर सरकार की कोई व्यवस्था नहीं थी, यह सरकार का बिना सोचा-समझा निर्णय था। कोर्ट की तरफ से केंद्र सरकार के इस फैसले को रद्द कर दिया जाना चाहिए। इसके साथ ही यह भी कहा गया कि इसके लिए कानून बनाया जाए ताकि इस तरह का फैसला दोबारा न दोहराया जा सके।

2- सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?- कोर्ट ने कहा कि इस फैसले में कोई त्रुटि नहीं दिख रही है। इसके पहले कोर्ट ने 7 दिसंबर 2022 को भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) को आदेश दिए थे कि वह सरकार द्वारा नोटबंदी के फैसले से संबंधित रिकॉर्ड पेश करें। इसके बाद कोर्ट ने रिकॉर्ड की जांच में पाया कि 6 महीने की अंतिम अवधि के अंदर RBI और केंद्र सरकार के बीच परामर्श हुआ था। हम इस फैसले को केवल इसलिए त्रुटिपूर्ण नहीं मान सकते क्योंकि यह केंद्र सरकार की तरफ से लिया गया है। बल्कि इसे वैधानिक योजना से समझा जाना चाहिए।

Demonetisation verdict
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3- आज की सुनवाई में पांच-न्यायाधीशों ( एसए नजीर, जस्टिस बीआर गवई, बी वी नागरत्ना, वी रामासुब्रमण्यन) की संविधान पीठ के इस फैसले को 4:1 का बहुमत मिला। लेकिन इनमें से एक न्यायाधीश जस्टिस बी वी नागरत्ना ने फैसले पर असहमति जताई। उन्होंने कहा कि नोटबंदी कोई छोटा मुद्दा नहीं है यह एक गंभीर मुद्दा है। ऐसे फैसलों से नागरिकों के साथ-साथ अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ता है। केंद्र सरकार को ऐसा फैसला नहीं लेना चाहिए था। इस फैसले के सिवा सरकार कानून के माध्यम का प्रयोग कर सकती थी। लेकिन अन्य 4 न्यायाधीशों ने नोटबंदी के फैसले को वैधानिक योजना बताया।

4- केंद्र सरकार का तर्क- केंद्र सरकार ने कहा कि नोटबंदी सोच समझ कर लिया गया निर्णय था। ऐसा कदम उठाने का मकसद था कि इसके जरिए टेरर फंडिंग, काला धन, टैक्स चोरी और नकली नोटों से निपटा जा सके। यह एक बड़ी रणनीति का हिस्सा था।

5- भारतीय रिजर्व बैंक का तर्क- RBI के वकील ने कहा कि हम मानते हैं कि इस फैसले से कुछ “अस्थायी दिक्कतें” आई थीं। जो राष्ट्र निर्माण प्रक्रिया का हिस्सा हैं। लेकिन एक समय के बाद उन दिक्कतों का एक सिस्टम के तहत सुलझाव कर लिया गया।

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