उप राष्ट्रपति व कानून मंत्री के खिलाफ दायर याचिका खारिज, जानिए क्या है पूरा मामला?

कानून मंत्री किरेन रिजिजू और उप राष्ट्रपति धनखड़ ने न्यायलय को लेकर कई बात कही थी।

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Bombay High Court: कानून मंत्री किरेन रिजिजू बॉम्बे हाई कोर्ट और उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़(फाइल फोटो)
Bombay High Court: कानून मंत्री किरेन रिजिजू बॉम्बे हाई कोर्ट और उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़(फाइल फोटो)

Bombay High Court: बॉम्बे हाई कोर्ट में केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू और उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के खिलाफ एक याचिका दायर की गई थी। यह याचिका बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन के द्वारा दायर की गई थी। पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट और न्यायालय पर दिए गए कानून मंत्री और उप राष्ट्रपति के बयानों के खिलाफ यह याचिका दायर की गई थी, जिसे बॉम्बे हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि कुछ लोगों के बयान देने से सुप्रीम कोर्ट की साख कम नहीं हो सकती है।

Bombay High Court का बोर्ड
Bombay High Court का बोर्ड

Bombay High Court:सुप्रीम कोर्ट की विश्वसनीयता छूती है आसमान- हाई कोर्ट

कानून मंत्री किरेन रिजिजू और उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के द्वारा न्यायालय पर किए गए बयानबाजी के खिलाफ दायर याचिका को बॉम्बे हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा “सुप्रीम कोर्ट की विश्वसनीयता आसमान छूती है। ये कुछ लोगों के बयान से कम नहीं हो सकती।”

अपने सात पन्नों के फैसले में हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि हर नागरिक संविधान से बंधा हुआ है। जितनी भी संवैधानिक संस्थाएं हैं, उन्हें भी संविधान का सम्मान करना है। इसमें संवैधानिक पदों पर बैठे लोग भी शामिल हैं। कोर्ट ने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि संवैधानिक पद पर बैठे लोगों को इस तरह से नहीं हटाया जा सकता है। निष्पक्ष आलोचना वैसे भी की जा सकती है।

जानिए क्या है पूरा मामला ?

दरअसल, कानून मंत्री किरेन रिजिजू और उप राष्ट्रपति धनखड़ ने न्यायलय को लेकर कई बात कही थी। मंत्री रिजिजू ने हाल ही में न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली की पारदर्शिता पर सवाल उठाया था। उन्होंने कॉलेजियम में सरकार के प्रतिनिधियों को भी शामिल करने का सुझाव दिया था। इसके लिए किरेन रिजिजू ने सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ को पत्र भी लिखा था।
वहीं, उप राष्ट्रपति धनखड़, जो राज्यसभा के सभापति के रूप में भी कार्य करते हैं, ने 1973 के केशवानंद भारती मामले के ऐतिहासिक फैसले पर सवाल उठाया था जिसने “मूल संरचना” सिद्धांत दिया था। सिद्धांत यह निर्धारित करता है कि संविधान में कुछ बुनियादी विशेषताएं हैं जिन्हें संसद द्वारा नहीं बदला जा सकता है।

धनखड़ ने कहा था कि 50 साल पुराने फैसले ने एक बुरी मिसाल कायम की है और यदि कोई प्राधिकरण संविधान में संशोधन करने की संसद की शक्ति पर सवाल उठाता है, तो यह कहना मुश्किल होगा कि हम एक लोकतांत्रिक राष्ट्र हैं।

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