Allahabad HC: विश्‍वविद्यालय के कुलसचिव को अवमानना नोटिस जारी

हाई कोर्ट ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कुलसचिव नरेंद्र कुमार शुक्ल को अवमानना नोटिस जारी कर 22 मार्च को हाजिर होने का निर्देश दिया है।

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Allahabad HC: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कुलसचिव नरेंद्र कुमार शुक्ल को अवमानना नोटिस जारी कर 22 मार्च को हाजिर होने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कुलसचिव से पूछा है, कि क्यों न उनके खिलाफ कोर्ट आदेश की अवहेलना करने पर अवमानना का आरोप निर्मित किया जाए। यह आदेश न्यायमूर्ति जेजे. मुनीर ने हरेंद्र प्रताप सिंह और 30 अन्य की अवमानना याचिका पर दिया है।

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Allahabad HC: विशेष अपील दाखिल

कोर्ट ने कहा कि आदेश के खिलाफ विश्वविद्यालय ने विशेष अपील दाखिल की है, लेकिन इसके निस्तारण के कोई प्रयास नहीं किए गए। कोर्ट के आदेश का पालन भी नहीं किया जा रहा है। मालूम हो कि दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रम के तहत विश्वविद्यालय ने स्व वित्त पोषित पत्राचार पाठ्यक्रम शुरू किया। अध्यापकों को वेतन भुगतान किया गया, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने इसे स्वीकार नहीं किया।

अनुदान देने से इंकार कर दिया। वेतन भुगतान नहीं होने पर याचिका दायर की गई। हाई कोर्ट ने विश्वविद्यालय के कुलपति व कुलसचिव के याचियों के वेतन के भुगतान करने का आदेश दिया। जिसके खिलाफ अपील दाखिल है, आदेश पर रोक नहीं है। आदेश की अवहेलना करने पर अवमानना याचिका दायर कर दंडित करने की मांग की गई है। जिसपर कोर्ट ने कारण बताओ नोटिस जारी कर स्पष्टीकरण के साथ कुलसचिव को तलब किया है।

Allahabad HC: हाई कोर्ट ने कहा अधिवक्ता का बिना गाउन कोर्ट में खड़ा होना “दुर्भाग्यपूर्ण “

इलाहाबाद हाईकोर्ट के वरिष्ठ न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर तथा न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव की खंडपीठ ने कोर्ट में बिना गाउन के पेश हुए वकील की खिंचाई की और इसे ‘दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया’। कोर्ट ने कहा कि वह ऐसे कृत्य पर बार काउंसिल को संस्तुति कर सकते हैं, लेकिन ‘युवा’ वकील हैं। इस कारण ऐसा नहीं किया। भविष्य में ख्याल रखने की चेतावनी दी।

Allahabad HC: सुनवाई के दौरान बिना गाउन के थे वकील
नार्दन कोल फील्ड लिमिटेड की तरफ से युवा वकील संदीप कोर्ट में पेश हुए थे। वह अदालत के समक्ष बगैर गाउन पहने ही खड़े हो गये थे। जिस पर कोर्ट ने नाराजगी जाहिर की। इससे पहले भी वर्चुअल सुनवाई के दौरान वकील के पूरी पोशाक में न होने के कारण कैमरा ऑन करने से इंकार करने पर जमानत याचिका पर सुनवाई स्थगित कर दी। कोर्ट ने इसे ‘आपत्तिजनक’ बताया था और  केस को आगे की सुनवाई के लिए टाल दिया था। वकील जब वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से सुनवाई में शामिल हुआ तो उसका कैमरा बंद था। जब वकील को अपना कैमरा चालू करने का निर्देश दिया गया तो उसने कहा कि वह पोशाक में नहीं है, इसलिए वह कैमरे को ऑन नहीं कर सकता। 

पिछले साल, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक वकील को फटकार लगाई थी, जो वीसी मोड के माध्यम से एक अन्य व्यक्ति के साथ पेश हुआ था। वह व्यक्ति स्क्रीन पर ” बिना शर्ट के” दिखाई दे रहा था। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक वकील के कृत्य को ‘अस्वीकार्य’ करार दिया था, जो अदालत द्वारा जमानत अर्जी में आदेश सुनाने के दौरान खुद को तैयार करने की कोशिश कर रहा था।

अदालत ने कहा था “आवेदक की ओर से पेश वकील अदालत के कामकाज के तौर-तरीकों के अनुसार उचित वर्दी में नहीं है।जब आदेश दिया जा रहा है, तो वह तैयार होने की कोशिश कर रहे हैं। यह स्वीकार्य नहीं है। जून, 2021 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक वकील की खिंचाई की थी, जो कार में बैठे-बैठे ही केस की बहस करने की कोशिश कर रहा था। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को अदालतों को संबोधित करने के लिए सुनवाई के दौरान वकीलों के लिए ‘क्या करें और क्या न करें’ के लिए नियमों का एक सेट तैयार करने का भी निर्देश दिया था। 

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Allahabad HC: न्‍याय प्रशासन में होती है बाधा
जस्टिस राहुल चतुर्वेदी की पीठ का यह आदेश हाईकोर्ट के बार संघों के पदाधिकारियों को अपने सदस्यों को सलाह देने के लिए कहा था कि वे वर्चुअल मोड के माध्यम से इस न्यायालय के समक्ष पेश होने के दौरान कोई आकस्मिक दृष्टिकोण न अपनाएं, जिससे न्याय प्रशासन में बाधा उत्पन्न हो सकती है।

न्यायालय ने उस समय अपना रोष व्यक्त करते हुए कहा था, “वकीलों को अपने दिमाग में रखना चाहिए कि वे अदालतों के समक्ष एक गंभीर कार्यवाही में भाग ले रहे हैं। वे अपने ड्राइंग रूम में नहीं बैठे हैं और न ही इत्मीनान से समय बिता रहे हैं।”

Allahabad HC: सक्रिय वकालत करने वालों को ही हाईकोर्ट में जज नियुक्त करें, बार एसोसिएशन ने दिया प्रस्ताव

इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल से अनुरोध किया है कि हाईकोर्ट जज के रूप में केवल इलाहाबाद हाईकोर्ट में सक्रिय वकालत करने वाले अधिवक्ताओं के नाम ही भेजें जाए।
एसोसिएशन के अध्यक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता राधाकांत ओझा ने बताया कि इस आशय का प्रस्ताव मुख्य न्यायाधीश व अन्य प्राधिकारियों को भेजा गया है। विगत दिनों अवध बार एसोसिएशन ने भी ऐसा ही प्रस्ताव पारित कर भेजा था।

साढ़े दस लाख विचाराधीन मुकदमों का बोझ
अब हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने भी अपनी आवाज मिलाई है। अवध बार एसोसिएशन ने कहा कि हाईकोर्ट में कुल 160 न्यायाधीशों के पद स्वीकृत हैं। जिनमें से 120 स्थाई व 40 अस्थाई पद हैं। वर्तमान समय में 73 स्थाई व 19 अस्थाई , मुख्य न्यायाधीश को शामिल कर कुल 93 न्यायाधीश ही हैं, जिन पर साढ़े दस लाख विचाराधीन मुकदमों का बोझ है। कोरोना से पहले यह संख्या साढ़े 9लाख थी जो बढ़कर साढ़े दस लाख से अधिक हो चुकी है।
अवध बार एसोसिएशन यह भी प्रस्ताव किया है कि हाईकोर्ट के अधिवक्ताओं में से ही राज्य विधि अधिकारियों की नियुक्ति की जाय।

पारित प्रस्ताव में कहा गया है कि जिस वकील के पास 50केस है उसे ब्रीफ होल्डर नियुक्त किया जाए। इसी प्रकार अपर शासकीय अधिवक्ता व स्थाई अधिवक्ता के लिए 100केस,अपर शासकीय अधिवक्ता प्रथम व अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता के लिए 150 केस तथा शासकीय अधिवक्ता व मुख्य स्थायी अधिवक्ता के लिए 200केस अनिवार्य किया जाए। इतने मुकदमे हाईकोर्ट में दाखिल करने वाले वकीलों को ही सरकारी वकील नियुक्त किया जाए। अवध बार एसोसिएशन के प्रस्ताव की तर्ज पर हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने भी प्रस्ताव पारित किया है।

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