Allahabad HC: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मथुरा (Mathura) वृंदावन में होटल और रेस्तरां में मांसाहार परोसने पर लगी रोक पर हस्तक्षेप नहीं किया है। कोर्ट ने राज्य सरकार से एक हफ्ते में इसकी विस्तृत जानकारी मांगी है। कहा है, कि यदि मांगी गई जानकारी उपलब्ध नहीं कराई गई, तो होटल और रेस्तरां के लाइसेंस निरस्त करने के आदेश पर रोक लगाने की अर्जी की अगली तारीख पर विचार होगा। याचिका की सुनवाई 9 मार्च को होनी है। ये आदेश न्यायमूर्ति एसडी सिंह तथा न्यायमूर्ति एसके यादव की खंडपीठ ने मथुरा निवासी मुजाहिद मोहम्मद और 8 अन्य की याचिका पर दिया।
Allahabad HC: मांसाहार पर लगाया है प्रतिबंध
मालूम हो कि अपर मुख्य सचिव ने मथुरा-वृंदावन को पवित्र तीर्थ घोषित कर होटलों, रेस्तरां में मांसाहार पर प्रतिबंध लागू कर दिया है। मांसाहार देने वालों के लाइसेंस निरस्त करने के निर्देश दिए गए हैं। ये अधिसूचना मथुरा वृंदावन के 22 वार्डों में लागू की गई है। जहां पर मांसाहार प्रतिबंधित कर दिया गया है। इसके तहत जिला खाद्य सुरक्षा अधिकारी ने याचियों के लाइसेंस निरस्त कर दिए हैं। इसी मामले को लेकर कोर्ट में चुनौती दी गई है। याची का कहना है कि बिना कानूनी आधार के 11सितंबर 21 को अधिसूचना जारी की गई है। कार्रवाई करने से पहले याचियों को न ही नोटिस भेजे गए,न ही उन्हें अपना पक्ष रखने का अवसर दिया गया। नैसर्गिक न्याय एवं याचियों के संवैधानिक मूल अधिकार का उल्लघंन किया गया है। कोर्ट ने मुद्दे को विचार योग्य माना और राज्य सरकार से याचिका में उठाये गए मुद्दों पर जानकारी तलब की है।
Allahabad HC: कपिल मुनि करवरिया की याचिका की सुनवाई 31 मार्च को
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कौशांबी जिला पंचायत अध्यक्ष रहते हुए नियुक्तियों में षड्यंत्र और भ्रष्टाचार के आरोप में पूर्व सांसद कपिल मुनि करवरिया को हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है। 2 हफ्ते का अतिरिक्त समय दिया है। राज्य सरकार की तरफ से जवाबी हलफनामा दाखिल किया जा चुका है। जिसका याची की तरफ से जवाब दाखिल करने का समय मांगा गया। याचिका पर अगली सुनवाई 31 मार्च को होगी।
ये आदेश न्यायमूर्ति राजीव गुप्ता ने कपिल मुनि करवरिया की धारा 482की अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग करने की मांग में दाखिल याचिका पर दिया है। याची के वकील सुरेश चंद्र द्विवेदी ने कोर्ट से समय की मांग की। याचिका में स्वयं को बेकसूर बताते हुए पुलिस चार्जशीट व केस कार्यवाही को रद्द किए जाने की मांग की गई है। मालूम हो कि 2019 में जिला पंचायत में नियुक्तियों में धांधली की शिकायत की जांच कराई गई।
षड्यंत्र व भ्रष्टाचार को लेकर दाखिल रिपोर्ट पर विशेष सचिव उत्तर प्रदेश ने एसपी कौशांबी को एफआईआर दर्ज कर विवेचना करने का आदेश दिया था। इस मामले पर मंझनपुर थाने में एफआईआर दर्ज कराई गई। पुलिस ने वर्ष 2004-05 और वर्ष 2009 में लिपिक भर्ती में षड्यंत्र व अनियमितता के आरोप में चार्जशीट दाखिल की थी। आरोप है, कि करवरिया उस समय जिला पंचायत अध्यक्ष थे।
इनकी अध्यक्षता में चयन समिति गठित हुई। जिसमें पंचायत सदस्य मधुपति, सुशीला देवी, श्रीपाल चयन समिति के सदस्य थे। इन लोगों की मिलीभगत से नियुक्तियां की गईं। 4 पदों के विरुद्ध 8 लोगों की नियुक्ति की गई। अपने चहेतों को नौकरी पर रख लिया गया। नियुक्ति की सरकार से अनुमति भी नहीं ली गई। याची के वकील का कहना है, कि अधिवक्ता का कहना है कि नया जिला बना था। स्टाफ की जरूरत थी। नियमानुसार चयन समिति ने चयन किया और नियुक्ति की गई। आरोप पूरी तरह से निराधार हैं। ऐसे में आपराधिक कार्यवाही रद्द की जाए।
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