अस्पताल के बेड पर लाश, कंधे पर लाश, उस मां की लाश जिसने उसे जन्म दिया, पाल-पोस कर बड़ा दिया। लेकिन, गरीबी ने न तो उस अभागी मां का दामन छोड़ा और न ही उसके बेटे का। एक दिन मुफलिसी में उसने इस बेदर्द दुनिया को अलविदा कह दिया। ये कहानी इस देश की एक महिला की है, त्याग करने वाली एक मां की है। क्योंकि मां नहीं तो दुनिया नहीं है। इस मां की मौत भूख से हो गई। पेट की भूख मिटाने और दुनिया को देखने के लिए उसके पास अनाज नहीं थे। राशन कार्ड तक नहीं थे। जिस अनाज की कमी ने मीना की सांसें उखाड़ दीं, एक बच्ची ने भात-भात बोलकर अपनी मां के आंचल में दम तोड़ दिया। उसी अनाज की कोई फिक्र योगी सरकार के कारिंदों को नहीं है। ये तस्वीरें बारिश के पानी में भींग चुके सैकड़ों क्विंटल गेहूं की हैं।

उत्तराखंड-उत्तरप्रदेश के बॉर्डर एरिया रामपुर सीमा पर स्थित करतारपुर गांव में सैकड़ों क्विंटल अनाज बारिश में भींग रहे हैं। गेहूं कलेक्शन सेंटर मानो अनाथ हो वहां गेंहू सेंटर इंचार्ज को छोड़िये योगी सरकार का कोई भी नुमाइंदा दूर-दूर तक नजर नहीं आया। जिंदगी और मौत को तय करने वाले गेहूं के लिए यहां एक मामूली तिरपाल तक नहीं है। मजदूर रहीम इसकी पुष्टि करते हैं।

अनाज के उत्पादन में अपना खून-पसीना एक करने वाले किसानों के लिए ये देखना किसी दुर्दिन से कम नहीं है। वो बेहद आक्रोशित हैं, लापरवाह लोगों और अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई की मांग की है।

मौसम विभाग के लगातार अलर्ट के बावजूद उत्तराखंड-उत्तरप्रदेश के बॉर्डर एरिया रामपुर सीमा पर स्थित करतारपुर गांव में गेंहूं क्रय केंद्र लावारिश हालत में जहां गेहूं को सड़ने से बचाने के लिए एक तिरपाल तक नहीं खरीदा गया. भूख मिटाकर जिंदगी को हसीन कायनात दिखानेवाला अनाज अनाथ की तरह सड़ने-गलने के लिए छोड़ दिया गया है।

                                                                                                                         एपीएन ब्यूरो

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