गर्भपात को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने आज एक बड़ा फैसला सुनाया है। इस फैसले के मुताबिक अब किसी भी महिला को अबॉर्शन यानी गर्भपात कराने के लिए अपने पति की सहमति लेना जरूरी नहीं है।

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला एक तलाकशुदा व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी भी बालिग महिला को बच्चे को जन्म देने और गर्भपात कराने संबंधित फैसले लेने का अधिकार है। कोर्ट ने यह भी कहा कि, इस दौरान जरूरी नहीं कि महिला को इसके लिए पति की सहमति लें। यानी वो ऐसी स्थिति में खुद फैसले ले सकती हैं।

गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस ए.एम खानविलकर की बेंच ने ये फैसला सुनाया है। फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गर्भपात का फैसला लेने वाली महिला वयस्क है, वो एक मां है ऐसे में अगर वह बच्चे को जन्म नहीं देना चाहती है तो उसे गर्भपात कराने का पूरा अधिकार है। ये कानून के दायरे में आता है।

गौरतलब है कि यह फैसला जिस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया है उसमें पति ने अपनी याचिका में पूर्व पत्नी के साथ उसके माता-पिता, भाई और दो डॉक्टरों पर ‘अवैध’ गर्भपात का आरोप लगाया था। पति ने बिना उसकी सहमति के गर्भपात कराए जाने पर आपत्ति दर्ज की थी।

दरअसल, जिस व्यक्ति ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कि है उसकी शादी 1994 में हुई थी और एक साल बाद उसकी पत्नी को एक बच्चा हुआ। 1999 में पारिवारिक कलह के चलते पत्नी उसके मायके चली गई लेकिन 2003 में वो फिर प्रेगनेंट हुई और गर्भपात करवा लिया।

इसके बाद पति ने कोर्ट में महिला के माता-पिता, उसके भाई और डॉक्टर्स पर 30 लाख रुपए के मुआवजे का केस कर दिया। जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज करते हुए कहा कि विवाद के बाद दोनों के बीच शारीरिक संबंध की इजाजत है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि महिला गर्भ धारण करने के लिए भी राजी हुई है, यह पूरी तरह से महिला पर निर्भर है कि वह बच्चे को जन्म देना चाहती है या नहीं। पति उसे बच्चे को पैदा करने के लिए मजबूर नहीं कर सकता।

हालांकि इससे पहले पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने भी याचिकाकर्ता की याचिका ठुकराते हुए कहा था कि गर्भपात का फैसला पूरी तरह से महिला का हो सकता है और अब सुप्रीम कोर्ट ने भी यही फैसला सुनाया है।

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