हरियाणा में आधार कार्ड की गैर-मौजूदगी ने एक बेटे से उसकी मां को हमेशा के लिए छीन लिया है। सोनीपत के एक निजी अस्पताल ने मात्र इसलिए एक कारगिल शहीद की विधवा का इलाज करने से इंकार कर दिया क्योंकि उसके पास आधार कार्ड की ओरिजनल कॉपी नहीं थी। बेटे पवन ने बताया, मेरी मां ने तड़प-तड़प कर दम तोड़ दिया, लेकिन अस्पताल प्रबंधन आधार कार्ड जमा करवाने की बात पर अड़ा रहा।

बता दे मां की मौत के बाद बेटे ने निजी अस्पताल प्रबंधन के खिलाफ इंसाफ की लड़ाई लड़ने का फैसला ले लिया है। पवन ने बताया, रविवार को मां की 13वीं की रस्म पूरी करने के बाद पुलिस से केस दर्ज करवाने की मांग करेगा।

जानिए पूरा मामला

महलाना गांव निवासी लक्ष्मण दास 1999 के करगिल युद्ध में शहीद हुए थे। पिता के इंतकाल के बाद परिवार की जिम्मेदारी पवन के कंधो पर आ गई थी, पवन की मां शकुंतला हृदय की बीमारी से ग्रस्त थी। गुरुवार शाम को मां की तबियत बिगड़ती देख उनका बेटा पवन अपने साले के साथ मां को लेकर आर्मी कार्यालय पहुंचा, लेकिन आर्मी अस्पताल ने शकुंतला को निजी अस्पताल के लिए रेफर कर दिया था।

जब पवन अपनी मां को लेकर निजी अस्पताल पहुंचा तो अस्पताल प्रबंधन ने आधार कार्ड की मांग की। पवन ने अपने मोबाइल में आधार कार्ड दिखाया, लेकिन इसके बावजूद भी अस्पताल स्टाफ ओरिजिनल आधार कार्ड मुहैया कराने की जिद पर अड़ा रहा। शकुंतला जिंदगी और मौत के बीच की जंग लड़ रही थी, लेकिन अस्पताल को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ा और अस्पताल के इस असंवेदनशील रवैयें का हर्जाना शकुंतला को अपनी जान से चुकाना पड़ा।

पुलिस ने दिया अस्पताल का साथ

पवन ने बताया, उसके पास आधार कार्ड को छोड़कर सभी जरूरी कागजात मौजूद थे फिर भी उसकी सुनवाई नहीं की हुई। अस्पताल में ऊंची आवाज में बोलने पर पुलिस को बुलवा लिया गया था। लेकिन हरियाणा पुलिस ने भी अस्पताल का ही साथ दिया, जिस वजह से कारगिल शहीद पत्नी की तड़प-तड़प कर मौत हो गई।
अस्पताल ने पवन को झूठा ठहराया
इस मामलें में अस्पताल प्रबंधन का कहना है, कि अस्पताल अथॉरिटी ने कभी भी सिर्फ आधार के चक्कर में इलाज के लिए मना नहीं किया है और मना तो तब किया होता, जब पवन अपनी मां को लेकर अस्पताल में आया होता। पवन कभी अपनी मां को लेकर आया ही नहीं।

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