आखिर Pollution से हर साल सर्दियों में क्यों रुक सी जाती है दिल्ली, जानिए क्या हैं प्रदूषण के कारण

दिल्‍ली ओर आसपास के इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए गुरुवार की सुबह भी धुंध और प्रदूषण से भरी रही. दिल्ली में खराब होता वायु गुणवत्ता सुचकांक (Air Quality Index) और नोएडा में फैले प्रदूषण से हालात और बिगड़ गए हैं. दिल्ली समेत अन्य राज्यों की सरकारों के तमाम प्रयासों और दावों के बावजूद लोगों को प्रदूषण से राहत नहीं मिल रही है.

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आखिर Pollution से हर साल सर्दियो में क्यों रूक सी जाती है दिल्ली, जानिए क्या है Delhi में प्रदूषण के कारण - APN News
Delhi Pollution

भारत की राजधानी दिल्ली (Delhi) में हर साल सर्दियों (अक्टूबर से दिसंबर के बीच) में होने वाली प्रदूषण (Pollution) की समस्या को लेकर देश-विदेश के तमाम अखबारों में पहले पेज की सुर्खियां बनती रहती है. लेकिन आखिरकार इसके पिछे कारण क्या है कि दिल्ली में हर साल इतना प्रदूषण होता है.

दिल्‍ली ओर आसपास के इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए शुक्रवार की सुबह भी धुंध और प्रदूषण से भरी रही. दिल्ली में खराब होता वायु गुणवत्ता सुचकांक (Air Quality Index) और नोएडा में फैले प्रदूषण से हालात और बिगड़ गए हैं. दिल्ली समेत अन्य राज्यों की सरकारों के तमाम प्रयासों और दावों के बावजूद लोगों को प्रदूषण से राहत नहीं मिल रही है.

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नहीं मिल रही राहत

वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) ने चरण III के कार्यान्वयन की स्थिति का जायजा लेने के लिए दिल्ली के साथ गुरुवार को हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के एनसीआर जिलों की कार्यान्वयन एजेंसियों और निकायों के साथ बैठक कर स्टेज I और स्टेज II के तहत कार्रवाई के अलावा पूरे एनसीआर में ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP) के बारे में चर्चा की.

राजधानी में ग्रेप-3 (Graded Response Action Plan- GRAP) (GRAP 3 प्रदूषण को रोकने के लिए सबसे उच्चस्तर का प्लान है)  की पाबंदी के बावजूद हालात में कोई सुधार होता हुआ नजर नहीं आ रहा है. देश मे प्रदूषण पर नजर रखने वाले केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से मिली जानकारी के अनुसार दिल्ली स्थित शाहदरा में सर्वाधिक वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 843 दर्ज किया गया. नोएडा में AQI- 469 रहा, कई इलाकों में रियल टाइम AQI-500 के पार पहुंच गया. लेकिन इससे निपटने के लिए उठाये जा रहे कई कदमों के बावजूद अभी तक कोई प्रभावी तंत्र विकसित नही हो पाया है.

हालांकि पिछले दिनों दिल्ली सरकार ने घोषणा की है कि वह शहर में 5,000 एकड़ से अधिक धान के खेतों में पूसा बायो-डीकंपोजर (Bio-Decomposer) का फ्री छिड़काव करेगी क्योंकि इससे सर्दियों के दौरान धान की पराली जलाने और वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी.

दिल्लीवालों को घर से काम करने की अपील

दिल्ली में जानलेवा प्रदूषण के बीच दिल्ली सरकार ने लोगों से कम से कम निजी वाहन के कम उपयोग की अपील करते हुए दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने कहा कि 50 फीसदी प्रदूषण केवल वाहनों से हो रहा है. ऐसे में दिल्ली सरकार ने लोगों से अपील है कि वे घर से काम (Work From Home) को प्राथमिकता देने का कहा है.

दिल्ली में प्रदूषण के कारण

दिल्ली में हवा की निम्न गुणवत्ता के लिये धूल और वाहनों का प्रदूषण दो सबसे बड़े कारण हैं. अक्तूबर और जून के बीच वर्षा न होने के कारण शुष्क ठंड का मौसम होता है जिससे पूरे क्षेत्र में धूल का प्रकोप बढ़ जाता है. आईआईटी कानपुर के एक अध्ययन में कहा गया है कि धूल PM-10 में 56 फीसदी और PM 2.5 में 38 फीसदी की वृद्धि के लिए जिम्मेदार है.

इसके अलावा सर्दियों में प्रदूषण का दूसरा सबसे बड़ा कारण वाहनों का प्रदूषण है. IIT कानपुर के अध्ययन के अनुसार, सर्दियों में PM 2.5 का 20 फीसदी वाहन प्रदूषण से आता है.

वहीं आमतौर पर अक्टूबर महीने को उत्तर पश्चिम भारत में मानसून के निवर्तन (मानसून के पीछे हटने या वापिस लौटने को निवर्तन कहा जाता है) के लिये जाना जाता है. मानसून के दौरान हवाओं के बहने की दिशा पूर्व की ओर होती है, बंगाल की खाड़ी की ओर से आने वाली ये हवाएं अपने साथ नमी लेकर आती हैं, जिससे भारत के इस हिस्से में बारिश होती है. लेकिन जब यहां मानसून निवर्तन होता है तो हवाओं के बहने की दिशा पूर्व से बदलकर उत्तर-पश्चिम हो जाती है.

एक अन्य अध्ययन के मुताबिक, सर्दियों में दिल्ली की 72 फीसदी हवा उत्तर पश्चिम से आती है, जबकि शेष 28 प्रतिशत सिंधु-गंगा के मैदानी इलाकों से आती है. उत्तर-पश्चिम से आने वाली इन हवाओं के साथ राजस्थान और यहां तक कि कभी-कभी पाकिस्तान और अफगानिस्तान की धूल-मिट्टी भी दिल्ली और आस-पास के क्षेत्रों में पहुंच जाती है. जिससे प्रदूषण फैलता है.

Delhi Pollution 1
Delhi Pollution

पराली जलाने की समस्या

इसरो के मानक प्रोटोकॉल के अनुसार, 15 सितंबर 2022 से 28 अक्टूबर 2022 के बीच, पंजाब में कुल 10,214 पराली जलाने की घटनाओं की सूचना मिली, जो कि पिछले वर्ष की इसी अवधि में 7,648 की तुलना में लगभग 33.5 फीसदी की उल्लेखनीय वृद्धि दर्शाता है.

वर्तमान धान कटाई के मौसम के दौरान लगभग 71 फीसदी आग की घटनाएं केवल सात जिलों अमृतसर, संगरूर, फिरोजपुर, गुरदासपुर, कपूरथला, पटियाला और तरनतारन में हुई हैं. ये पंजाब के पारंपरिक हॉट-स्पॉट जिले रहे हैं और इसलिए इन जिलों पर ध्यान देने की जरूरत थी.

रिपोर्ट के अनुसार कुल 10,214 मामलों में से, पिछले 7 दिनों में 7,100 जलने की घटनाएं दर्ज की गई हैं, जो कि कुल का लगभग 69 फीसदी है.

क्यों जलाई जाती है पराली? (Stubble Burning)

किसान अगली फसल को बोने के लिये पिछली फसल के अवशेषों को खेत में जला देते हैं.इसी क्रम में सर्दियों की फसल (रबी की फसल) की बुवाई हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों द्वारा कम समय के अंतराल पर की जाती है इसके अलावा अगर सर्दी की छोटी अवधि के कारण फसल बुवाई में देरी होती है तो उन्हें काफी नुकसान हो सकता है, इसलिये पराली को जलाना, पराली की समस्या से निपटना का सबसे सस्ता और जल्द तरीका है.पराली जलाने की यह प्रक्रिया अक्तूबर के आसपास शुरू होती है और नवंबर में अपने चरम पर होती है, जो दक्षिण-पश्चिम मानसून की वापसी का समय भी है.

पराली जलाने से होने वाला नुकसान

खुले में पराली जलाने से हवा में बड़ी मात्रा में जहरीले प्रदूषक निकलते हैं जिनमें मीथेन (CH4), कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (VOC) और कार्सिनोजेनिक पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन जैसी हानिकारक गैसें भी शामिल होती हैं.

पराली जलने के दौरान ये प्रदूषक हवा में फैल जाते हैं और भौतिक एवं रासायनिक (Physical and Chemical) परिवर्तन से गुजरकर अंततः स्मॉग (गहरा कोहरा) की मोटी चादर बनाकर हरेक जीव जंतु के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं.

पराली जलाने से जलाने से मिट्टी के पोषक तत्व खत्म हो जाते हैं, जिससे इसकी उर्वरकता कम हो जाती है. इसके अलावा उत्पन्न गर्मी मिट्टी में प्रवेश करती है, जिससे नमी और उपयोगी रोगाणुओं (Microorganism) को नुकसान होता है.

पराली जलाने के विकल्प

पराली का स्व-स्थाने (In-Situ) प्रबंधन जीरो-टिलर मशीनों और जैव-अपघटकों के उपयोग द्वारा फसल अवशेष प्रबंधन के माध्यमसे भी किया जा सकता है, लेकिन ये तकनीक महंगी और खर्चीली होने के कारण छोटे किसान इसका उपयोग नहीं कर पाते हैं

इसी प्रकार बाह्य-स्थाने (Ex-Situ) प्रबंधन के तौर जैसे मवेशियों के चारे के रूप में चावल के भूसे का उपयोग किया जा सकता है.

बायोएंजाइम-पूसा

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (Indian Agriculture Research Institute) ने बायो एंजाइम-पूसा (bio enzyme-PUSA) के रूप में पराली जलाने का एक परिवर्तनकारी समाधान पेश किया है. यह अगले फसल चक्र के लिये उर्वरक के खर्च को कम करते हुए जैविक कार्बन और मिट्टी के स्वास्थ्य में भी वृद्धि करता है.

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