उत्तराखंड हाईकोर्ट द्वारा नागरिक का दर्जा मिलने के बाद अब केन्द्र सरकार ऐसा प्रावधान लाने जा रही है जिससे गंगा नदी को मलिन करने वाले को वैसी सजा मिले, जो किसी अन्य नागरिक को मारने, पीटने या धोखाधड़ी करने पर मिलती है। भारत सरकार की ओर से नियुक्त की गई एक कमेटी ने राष्ट्रीय नदी गंगा (कायाकल्प, संरक्षा और प्रबंधन) विधेयक, 2017 का मसौदा तैयार किया है और इसके अनुसार अगर कोई भी पवित्र गंगा नदी को अपवित्र करने का कोई भी कार्य करता है तो उसे सात साल की सजा या 100 करोड़ का जुर्माना या दोनो हो सकता है। इस बिल में गंगा को मलिन करने के अलावा बिना इजाजत के नदी की धारा को रोकना,बांध बनाना और तटों पर अवैध खनन भी शामिल है।

सेवानिवृत्त जस्टिस गिरधर मालवीय के नेतृत्व वाली इस कमेटी ने यह भी सुझाव दिया है कि गंगा से जुड़ी उसकी प्रमुख सहायक नदियों के एक किलोमीटर के दायरे को ‘जल संरक्षित जोन’ घोषित किया जाए। हालांकि कमेटी ने साथ में यह भी कहा कि यह जोन बिल के लागू होने के बाद छह महीने के अंदर वैज्ञानिक शोध करके ही बनाया जाएं। अगर ये प्रस्ताव पास होकर कानून की शक्ल लेता है तो गंगा को प्रभावित करने वालों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। हालांकि यह बिल संसद में लाने से पहले केंद्र सरकार उन राज्य सरकारों से भी बात करना चाहती है जहां गंगा और उसकी सहायक नदियां बहती हैं।

बिल का मसौदा तैयार करने वाली चार सदस्यीय विशेषज्ञ कमेटी में से एक वकील अरुण कुमार गुप्ता का कहना है कि इस बिल में ऐसे कड़े प्रावधान इसलिए किए जा रहे हैं ताकि लोग कानून तोड़ने की हिम्मत न कर सकें और नदी प्रदूषण से मुक्त हो सके। गुप्ता ने कहा कि पिछले सालों में नदी को साफ करने के लिए करोड़ों रुपये खर्च किए जा चुके हैं, लेकिन अगर कड़े प्रावधान और जवाबदेही तय नहीं की गई तो ये प्रयास भी विफल हो जाएंगे।

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