देश की राजधानी दिल्ली से सटे बागपत में सरकार का दावा है कि यहां शिक्षा व्यवस्था को दुरूस्त किया जा रहा है।  खुद यहां के सांसद सत्यपाल सिंह केन्द्र सरकार में मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री है, जिनके जिम्मे देशभर में शिक्षा व्यवस्था को पटरी पर लाने की जिम्मेदारी है। तो सत्यपाल सिंह के संसदीय क्षेत्र में शिक्षा व्यवस्था में सुधार हुआ है ये जानने के लिए जब हमने बागपत का दौरा किया।  सबसे पहले हम बागपत जनपद में खेकड़ा ब्लाक के निरौजपुर एम्मा गांव के प्राथामिक स्कूल पहुंचे।

स्कूल की बुनियादी सुविधाओं की बात करें तो स्कूल की बिल्डिंग बहुत पुरानी है फिर भी रख रखाव ठीक-ठाक है।  स्कूल में जब हमने शौचालय का जायजा लिया तो देख कर अच्छा लगा कि यहां शौचालय अच्छी स्थिति में है, रंगरोगन और साफ-सफाई भी अच्छी है। स्कूल में पानी की व्यवस्था भी ठीक है।  हैंडपंप से बच्चों को पीने का पानी मिल रहा है।  हालांकि इससे कितना शुद्ध पानी मिलता होगा, ये बड़ा सवाल है।

निरौजपुर एम्मा गांव के इस प्राथामिक स्कूल में क्लास एक से पांच तक की पढ़ाई होती है लेकिन स्टूडेंट्स की तादाद अभी यहां मात्र 21 है।  गांव के बच्चों को शिक्षा से जोड़ना यहां अभी भी बड़ी चुनौती है।

इसके बाद हमने बागपता के ऐम्मा गांव के ही उच्च प्राथामिक स्कूल का दौरा किया। स्कूल की इमारत की बात करें तो ये ज्यादा पुरानी नहीं है इसलिए ठीक नजर आ रही है। स्कूल चारदीवारी से घिरी हुई है लेकिन स्कूल परिसर में साफ-सफाई की व्यवस्था नहीं है।  पूरे परिसर में घास और झाड़ियां उगी हुई है।  जब हम यहां पहुंचे तो बच्चे स्कूल पहुंच रहे थे। स्कूल के प्रिंसिपल के मुताबिक यहां 15 छात्र-छात्राओं का नामांकन है लेकिन हमें स्कूल में महज सात-आठ बच्चे ही नजर आए।  ऐसे में शिक्षा के प्रति उदासीनता देश के भविष्य के लिए चेतावनी है कि अगर शिक्षा व्यवस्था में सुधार नहीं हुआ तो आने वाले वक्त में देश में निरक्षरों की फौज खड़ी हो जाएगी।

दूसरी बुनियादी सुविधाओं की बात करें तो यहां बच्चों के पीने के पानी की कोई व्यवस्था नहीं है जो एक हैंडपम्प है वो खराब पानी दे रहा है। स्कूल में शौचालय की बात करें तो शौचालय तो अच्छा बना है। लड़के और लड़कियों के लिए अगल-अलग शौचालय बनाया गया है लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि यहां तक पहुंचा कैसे जाए।  शौचालय के रास्ते में बड़ी-बड़ी घासें और झाड़ियां उगी हुई है।  ऐसे में बच्चे इस शौचालय का इस्तेमाल कैसे करते होंगे समझा जा सकता है।

बागपत में सरकारी स्कूलों का सच जानने के लिए हमारा अगला पड़ाव रटौल गांव था।  हम रटौल गांव के प्राथमिक स्कूल नंबर दो पहुंचे।  हम यहां करीब नौ बजे पहुंचे तो स्कूल परिसर में साफ-सफाई चल रही थी।  बाहर से देखने पर स्कूल की इमारत ठीक-ठाक नजर आई।  यहां स्कूल में बच्चों की संख्या हैरान करने वाली थी।  इस प्राथमिक स्कूल में 186 बच्चों को पढ़ाया जा रहा था और ज्यादातर बच्चें स्कूल में मौजूद थे।  इन बच्चों को पढ़ाने के लिए यहां पांच शिक्षक नियुक्त है।  बच्चों और शिक्षकों की संख्या को देख कर संतोष हुआ क्योंकि इससे पहले बागपत के जिन स्कूलों में हम गए थे वहां बच्चे और शिक्षकों की संख्या बेहद ही कम थी। खास बात ये कि यहां के प्राथमिक स्कूल में बच्चों के बैठने की भी अच्छी व्यवस्था है।  सुंदर से क्लास रूम में बच्चे बेंच और डेस्क में बैठ कर पढ़ाई कर रहे हैं।  अब तक इस स्कूल की जो सुंदर सी तस्वीर हमारे जेहन में बनी थी वो उस वक्त काफूर हो गई जब हम इस जर्जर से कमरे में पहुंचे।  इस क्लास की छत और दीवार दोनों ही जर्जर स्थिति में है। वहीं फर्श भी पक्की नहीं होकर इसमें ईंट बिछी हुई हैं।  दीवारें दरक रही है और इनमें सीलन लगा हुआ है। और जरा सी बारिश होने पर छत से पानी टपकने लगता है। हाल ये है कि ये इस क्लास की छत और दीवार कभी भी भरभरा कर गिर सकती है। लेकिन क्लास रूम की कमी की वजह से खतरे के बावजूद यहां बच्चों को पढ़ाई कराया जा रहा है।  हाल ये है कि खुद टीचर भी यहां पढ़ाने में डरती है।

दरअसल बागपत में सब बढ़े, सब बढ़े अभियान उस मुकाम पर नहीं पहुंच पाया जिससे उम्मीद की किरण जग सके।  केन्द्रीय मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री सत्यपाल सिंह के संसदीय क्षेत्र बागपत में आज भी सरकारी स्कूलों की स्थिति बदहाल है।  ऐसे में कैसे पढ़ें और कैसे बढ़े बच्चें, ये बड़ा सवाल है।

—एपीएन ब्यूरो,

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