देश में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर हमेशा से प्रश्न उठते रहे हैं।सरकारें कोई भी रही हों, महिला सुरक्षा को लेकर दावे कितने भी किए गए हों लेकिन बलात्कार और महिलाओं के खिलाफ बढती शोषण की घटनाएं सरकार के दावों की पोल-खोल देती हैं। दिल्ली का निर्भयाकांड सामने आने के बाद, जिस तरह से देश में आक्रोश देखने को मिला, कानून में परिवर्तन किया गया, उसके बाद लगा कि अब हालात में सुधार होगा। लेकिन अफसोस, महिला अत्याचार के मामले कम होने के बजाए बढ़ते ही जा रहे हैं।सवाल उठता है कि आखिर कब-तक बहू-बेटियों की इज्जत से यूं ही खिलवाड़ होता रहेगा।कब-तक बेटियां मनचलों की मनमानी को बर्दाश्त करने को मजबूर रहेंगी।

मध्य-प्रदेश के मंदसौर की एक विशेष अदालत ने एक 8 साल की मासूम बच्ची से हैवानियत करने वाले दोषियों को फांसी की सजा का ऐलान कर, ये संदेश देने की कोशिश की है कि हमारे सिस्टम में भले ही जंग लगी हो, लेकिन अच्छी नीयत के साथ अगर प्रयास किया जाए।तो ऐसी संवेदनहीन मानसिकता रखने वालों को ना सिर्फ कड़ी सजा दी जा सकती है बल्कि, ऐसे में लोगों के लिए कड़ा संदेश भी होगा।

कमी कहां हैं।? क्या पर्याप्त कानून ना होने के चलते इस तरह की घटनाएं बढ़ती हैं। या फिर जिम्मेदार लोगों की रस्म-अदायगी, ऐसी ओछी मानसिकता वाले लोगों के हौंसले बुलंद करती है और सबसे अहम, हमारे सिस्टम में लगी जंग को अगर छुड़ा दिया जाए। तो भी, क्या सकारात्मक नतीजे सामने आ सकते हैं। ये सवाल इसलिए हैं क्योंकि जानकार भी ये मानते हैं कि संवेदहीन हो चुके लोगों को सबक सिखाने के लिए पर्याप्त कानून मौजूद हैं । लेकिन साफ नीयत औऱ अपने फर्ज के प्रति बेरुखी के अभाव के चलते हमारी बेटियां आज भी इन दरिंदों के चंगुल से आजाद नहीं हो पा रहीं।

ब्यूरो रिपोर्ट, एपीएन

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