उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सूबे को उत्तम प्रदेश बनाने के चाहें कितने दावे करें, लेकिन अक्सर उनके दावों की पोल खुल ही जाती है। ताबड़तोड़ एनकाउंटर के जरिए वाहवाही बटोरने वाली पुलिस, कहीं रसूखदारों के सामने नतमस्तक नजर आती है तो कहीं अपने फर्ज, अपनी जिम्मेदारी को तिलांजलि देकर, महकमे की साख पर बट्टा लगाती दिखती है।

उन्नाव कांड अभी भी लोगों के जेहन से उतरा नहीं था, कि इससे जुड़ा एक और विवाद सामने आ गया। दरअसल, जिस उन्नाव कांड ने सरकार के दामन को दागदार कर दिया था। इसी कांड के मुख्य गवाह की अचानक हुई मौत पर अब सवाल उठ रहे हैं। सवाल इस बात को लेकर कि, इस बात की भनक आखिर पुलिस को क्यों नहीं लगी। गवाह की मौत के बाद क्यों आनन-फानन में उसे दफन कर दिया गया।

पीड़ित पक्ष ने इस मौत को साजिश का हिस्सा बताते हुए जांच की मांग की है। लेकिन पुलिस ने बगैर किसी जांच के पहले ही ये तय कर दिया कि यूनुस नाम के इस गवाह की मौत बीमारी की वजह से हुई है। पुलिस की कारगुजारी यहीं खत्म नहीं होती। बदायूं में गैंगरेप की शिकार एक नाबालिग लड़की को इंसाफ दिलाने के बजाए, दबाव बनाकर समझौता करने का प्रयास किया गया जिससे आहत किशोरी ने फांसी लगाकर अपनी जान दे दी।

ये तो बात रही पुलिस की निरंकुशता की। लेकिन रसूखदारों के सामने पुलिस कैसे अपने घुटने टेक देती है इसकी बानगी राजधानी में देखने को मिली। जहां विश्व-विद्यालय में प्रोफेसर की पिटाई के मामले के आरोपी को बीजेपी विधायक के गुर्गों ने पुलिस की हिरासत से जबरन छुड़वा लिया। विरोध करने पर चौकी इंचार्ज को भी पीटा गया। ऐसे में सवाल इस बात को लेकर उठ रहे हैं कि जिस प्रदेश में महिलाएं और बच्चियां सुरक्षित ना हों। पुलिस का रवैया संदेह के घेरे में हो। उस प्रदेश के उत्तम प्रदेश होने की उम्मीद भला कैसे की जा सकती है।

 

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