मोदी सरकार के सपनों का ताजमहल यानी की नई संसद भवन, जो कि सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत बनाई जा रही है, उसे सुप्रीम कोर्ट ने मंजूरी दे दी है। यानी की संसद के निर्माण कार्य का रास्ता साफ हो गया है। सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को लेकर कई याचिकाएं दायर हुई थी। जिसपर कोर्ट ने आज अपना रुख साफ कर दिया है।

याचिका में लैंड यूज चेंच करने को लेकर सेंट्रल विस्टा की वैधता पर कई सवाल खड़े हुए थे। जिसे कोर्ट ने लंबित रखा है।

याचिका पर सुनवाई करते हुए तीन जजों की बेंच जस्टिस एएम खानविल्कर, दिनेश माहेश्वरी और संजीव खन्ना ने मंगलवार को अपना फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार वे सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को मंजूरी देते समय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा दी गई सिफारिशों को बरकरार रखते हैं। साथ ही कोर्ट का कहना है कि, निर्माण कार्य शुरू करने से पहले धरोहर संरक्षण समिति की स्वीकृति आवश्यक है।

तीन जजों की बेंच में फैसला दो एक के बहुमत में है। जस्टिस संजीव खन्ना ने कुछ बिंदुओं पर अलग विचार रखे हैं। उन्होंने प्रोजेक्ट की हिमायत की है, लेकिन लैंड यूज में बदलाव से सहमत नहीं हैं। उनका मानना है कि यह परियोजना शुरू करने से पहले हेरिटेज कंजर्वेशन कमेटी की मंजूरी लेनी जरूरी थी।

बता दें कि कुछ दिन पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई संसद की नींव रखी थी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि, उसे शिलान्यास से कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने तक कोई निर्माण, तोड़फोड़ या पेड़ गिराने या स्थानांतरित करने का काम ना हो। अब सुप्रीम कोर्ट लैंड यूज मामले में सुनवाई करेगा।

नई संसद भवन के निर्माण कार्य को लेकर सरकार ने कोर्ट में दिया तर्क

  • केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि 20 हजार करोड़ रुपये का सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पैसे की बर्बादी नहीं है, बल्कि इससे धन की बचत होगी।
  • सरकार के पक्षकार तुषार मेहता ने कोर्ट में तर्क पेश करते हुए कहा था कि, मौजुदा संसद भवन में आग लगने का खतरा अधिक है। संसद को 1927 में बनाया गया था। जिसका उद्देश्य विधान परिषद के भवन का निर्माण था न कि दो सदन का था। उन्होंने कहा कि जब लोकसभा और राज्यसभा का संयुक्त सत्र आयोजित होता है, तो सदस्य प्लास्टिक की कुर्सियों पर बैठते हैं। इससे सदन की गरिमा कम होती है।

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