देश के अधिसंख्य किसान गरीब हैं, ये नई बात नहीं है। कई किसान सूदखोरों के शिकंजे में फंसकर असमय खुद की हत्या करने को विवश हैं। उन्हें सरकारें कर्जमाफी का लॉलीपॉप देती रही हैं। वहीं देश के किसानों का दूसरा पक्ष भी है, जो संपन्न हैं उनके लिए हजारों रुपये शायद मायने नहीं रखते। तभी तो वो किसान आंदोलन के नाम पर लाखों लीटर दूध बहाने से बाज नहीं आते। लाखों क्विंटल सब्जियों को कुचलने से खुद को नहीं रोकते।

वहीं अगर कुपोषण पीड़ित गरीब बच्चों का चेहरा आपकी आंखों के सामने से गुजरे लेकिन इससे इन संपन्न किसानों को कोई फर्क नहीं पड़ता। जबकि उधमसिंहनगर के तहसील बाजपुर के ये किसान इन लाखों लीटर दूध को सहकों पर बर्बाद करने की बजाय देश और अपने इलाकों के बच्चों में बांटते तो शायद मौसम भी इन पर मेहरबान हो जाता।

किसान आंदोलन और सरकार विरोध के नाम पर ऐसा विरोध कतई जायज नहीं ठहराया जा सकता। खासकर भारत जैसे देश में जहां की आधी आबादी आज भी दो वक्त की रोटी के लिए तरस रही हैं। साथ ही ये उन किसानों के मुंह पर भी किसी तमाचे से कम नहीं जो आर्थिक रूप से अक्षम होते हुए भी जमीन में सोना उगाने और मौसम की बेरूखी से उसी जमीन में खुद को दफन करने को मजबूर हैं।

आंदोलनरत किसानो ने हाइवे पर एक मिल्क वैन को रोककर उसमें रखा सैकड़ों लीटर दूध सड़कों पर बहा दिया। साथ ही सब्जियां भी फेंक दीं। आंदोलन के नाम पर किसानों के नेता इसे करना अपना गुमान समझते हैं। भारतीय किसान यूनियन के प्रदेश उपाध्यक्ष अजीत रंधावा इसे जायज ठहराते दिखे।

उधमसिंहनगर के बाजपुर में राष्ट्रव्यापी किसान आंदोलन के नाम पर ये किया गया। आंदोलन के समर्थन में उतरे भारतीय किसान यूनियन और अन्य किसान संगठनों ने दूध की सप्लाई को रोक दिया। कई गाड़ियों में सप्लाई के लिए भेजे जा रहे हजारो लीटर दूध को सड़कों पर बहा दिया गया। सड़कों पर सब्जियां फेंक कर उसे पैरों से कुचला गया। भारतीय किसान यूनियन उधमसिंहनगर के जिला मंत्री विजेंद्र डोगरा पूछने पर बचाव करते दिखे।

राष्ट्रव्यापी आंदोलन के समर्थन में किसानों का ये विरोध अजीब से कम कतई नहीं है। क्योंकि इससे सरकारों की मोटी चमड़ी पर फर्क नहीं पड़ता लेकिन इनके हाथों बर्बाद किये जा रहे सामानों से लाखों गरीबों का पेट भर सकता है।

आंदोलन के नाम पर  उधमसिंहनगर के तहसील बाजपुर बेरिया दौलत के 14 गांवों के दुग्ध उत्पादकों ने दुग्ध समितियों को दूध की आपूर्ति नहीं की। स्वामीनाथन कमेटी के सिफारिशों को लागू करने के साथ ही किसानों के उत्पादों को उचित मूल्य देने की उनकी मांग वाजिब हैं। लेकिन, संसाधनों की जबरन बर्बादी कही से उचित नहीं है।

ब्यूरो रिपोर्ट APN

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here