केंद्र ने महंगे पेट्रोल और डीजल के लिए राज्य सरकारों के भारी-भरकम टैक्स को जिम्मेदार ठहराया है। एक प्रेस कांफ्रेंस में पत्रकारों को संबोधित करते हुए वित्त मंत्री अरूण जेटली ने कहा कि राज्य चाहें तो वे बिक्री कर और वैट में कमी कर पेट्रोलियम पदार्थों के दाम में कमी कर सकते हैं। हालांकि वित्त मंत्री ने कहा कि वह पेट्रोलियम पदार्थों पर केंद्र द्वारा लगाए जा रहे उत्पाद शुल्क यानी एक्साइज ड्यूटी में कोई कटौती नहीं करेगी।

जेटली ने केंद्र का रुख साफ करते हुए कहा कि सरकार को विकास कार्यों के लिए रेवेन्यू चाहिए। बगैर रेवेन्यू के सरकार सार्वजनिक खर्च में इजाफा नहीं कर सकेगी और इसका अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ेगा। उन्होंने कहा कि अगर सरकार को कमाई ही नहीं होगी तो हाईवे कहां से बनेंगे, अन्य विकास कार्य कैसे होंगे?

जेटली ने बताया कि विकास दर में जो बढ़ोतरी हो रही है वह सार्वजनिक खर्च में की गई बढ़ोतरी और एफडीआई की बदौलत है। अगर सार्वजनिक खर्च घटता है तो सामाजिक योजनाओं के खर्चों में कटौती करनी पड़ेगी।  सरकार ने इन्फ्रास्ट्रक्चर पर सार्वजनिक खर्च बढ़ाया है।

विपक्ष पर निशाना साधते हुए जेटली ने कहा कि जिन राज्यों में इन दलों की सरकार है, उन्हें भी केंद्र की टैक्स वसूली में हिस्सेदारी मिल रही है। केंद्र सरकार की ओर से पेट्रोल-डीजल पर वसूले गए टैक्स का 42 फीसदी राज्यों को मिलता है। क्या विपक्ष शासित राज्य इस टैक्स को ना लेने के लिए तैयार हैं? भाजपा शासित

राज्य इस संबंध में क्या कर रहे हैं, वित्त मंत्री इस सवाल से बजते नजर आए। गौरतलब है कि देश के एक बड़े हिस्से मसलन 24 में से 18 राज्यों में भाजपा या उनके सहयोगी दलों का शासन है।

हालांकि उन्होंने यह आश्वासन जरूर दिया कि तेल कीमतों में जल्द ही कमी आएगी। इससे पहले पेट्रोलियम मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान भी दीपावली तक पेट्रोल-डीजल के दामों में कमी आने की बात कर चुके है।

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