2 मई 2016 में अरुणाचल प्रदेश में कथित तौर पर हुई पुलिस फाइरिंग में 2 लोगों की मौत पर सुप्रीम कोर्ट ने अरुणाचल प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया है। न्यायमूर्ति जे. चेलेमेश्वर की अध्यक्षता वाली पीठ ने सरकार को नोटिस जारी किया है। पिछले साल अरुणाचल के तवांग जिले में हुई इस हिंसक घटना में एक 19 वर्षीय बौद्ध लामा सहित दो लोगों की मौत हो गई थी।

इस घटना के मृतक निमा वांगडी के बहन और पिता और एसएमआरएफ के सदस्यों की ओर  से उपस्थित वकील चौधरी अली जिया कबीर के साथ वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोन्साल्व्स ने मई 2016 की घटना में एक स्वतंत्र जांच की मांग की है। मृतकों की तरफ से उपस्थित अधिवक्ताओं ने कोर्ट से कहा कि पुलिस द्वारा की गई गोलाबारी में बौद्ध लामा समेत दो लोगों की मौत हुई और कई लोग गंभीर रूप से घायल भी हुए, जिसमें अभी तक स्पष्ट जांच नहीं हो पाई है, लिहाजा इस केस में एक स्वतंत्र जांच होनी चाहिए।

वकील ने एक जांच रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा था कि पुलिस द्वारा अलग-अलग  हथियारों से 380 राउंड गोला-बारूद फायर किया गया। इस घटना के बाद पुलिस ने सभी मजिस्ट्रेटों से आग्रह किया कि गोलीबारी को नियमित करने के लिए फायरिंग ऑर्डर देना चाहिए।

हालांकि, एक जांच आयोग ने पाया कि पुलिस की गोलीबारी “अनुचित थी क्योंकि पुलिस बल सभी मानक परिचालन प्रक्रियाओं का पालन करने में नाकाम रही थी।” इसके बाद आयोग ने एक स्वतंत्र एजेंसी द्वारा मामले की पूरी जांच की सिफारिश की थी, लेकिन राज्य सरकार द्वारा सिफारिश पर कोई कार्रवाई नहीं की गई थी। वरिष्ठ अधिवक्ता ने राज्य सरकार के खिलाफ यह भी तर्क दिया कि सरकार ने कभी इस मामले की जांच किसी स्वतंत्र आयोग को नहीं सौंपी जिसके परिणामस्वरूप घटना के 10 महीने बाद भी स्थानीय पुलिस की कार्यवाई में कोई प्रगति नहीं हुई। इस गोली कांड के खिलाफ दायर याचिका में याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि 2 मई 2016 को तवांग जिले में पुलिस और अर्धसैनिक बलों द्वारा निर्दोष प्रदर्शनकारियों पर भीषण गोलीबारी की गई जिसमें दो लोगों की मौत हो गई और कई लोग घायल हो गए। याचिका में कहा गया कि यह घटना पूरे राज्य में व्यापक चिंता पैदा करती है, जो राज्य और केंद्र सरकार की निष्क्रियता के कारण गहराई हुई है। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि अभी तक इस मामले में कोई भी गिरफ्तार तक नहीं किया गया है इसलिए लोगों को राज्य के किसी भी अधिकारी पर बिल्कुल भी विश्वास नहीं है कि उन्हें न्याय मिलेगा। याचिका में कहा गया कि 36 वर्षीय लामा लोकेशैग ग्येत्सो तवांग के रहने वाले थे और पिछले 4 साल से वह वहां के गरीब लोगों के बीच काम कर रहे थे। लामा खासतौर पर वहां के बांधों, विस्थापन और गरीब किसानों की भूमि के अधिग्रहण से संबंधित मुद्दों पर अपनी निक्षरता का लाभ उठा कर काम कर रहे थे। वह सरकार और निजी कंपनियों के द्वारा राज्य में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चला रहे थे। लामा ग्यात्तो ने घोषणा की कि वह सीबीआई जांच की मांग करने वाले हाइड्रोइलेक्ट्रिक परियोजनाओं के खराब होने पर जनहित याचिका दायर करेंगे। जिसके बाद उन्हें जान से मारने की धमकी मिलने लगी थी।   फिलहाल, इस पूरे मामले में सुप्रीम कोर्ट के सामने दायर याचिका में पहला सवाल यह है कि “ऐसी स्थिति में न्यायिक प्रतिक्रिया होनी चाहिए जहां राज्य पुलिस और केंद्रीय अर्धसैनिक बलों ने एक निहत्थे समूह पर बेवजह गलियाँ चलवा दी जिसके परिणामस्वरूप कई मौतें हुईं और कई लोग चोटिल हुए? ” सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान सभी तर्कों को सुनने के बाद अरुणाचल प्रदेश की सरकार से जवाब मांगा और कहा कि वह इस मामले की स्वतंत्र एजेंसियों के द्वारा जांच कराएं।

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