कई मौके आए हैं जब सुप्रीम कोर्ट का आदेश काफी चौकाने वाला भी होता है और काफी सराहनीय भी। वैसे तो हमारा कानून महिलाओं की सुरक्षा और उनके अधिकार के लिए हमेशा सजग रहता है। लेकिन उसे इस बात का भी ख्याल रहता है कि कभी कोई महिला कानून द्वारा दिए गए अधिकार का गलत फायदा न ले ले। दरअसल, एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि तलाक हो जाने के बाद किसी भी शख्स या उसके परिजनों के खिलाफ दहेज का मामला दर्ज नहीं किया जा सकता। शीर्ष अदालत ने यह भी माना है कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 498A या दहेज निषेध अधिनियम के किसी भी प्रावधान के तहत, दंपति के अलग होने के बाद अभियोजन टिकाऊ नहीं रहेगा। बता दें कि दहेज के प्रावधानों के तहत जुर्माने के साथ अधिक से अधिक 5 साल जेल का प्रावधान है।

खबरों के मुताबिक, एक मामले में एक पत्नी ने तलाक होने के बाद भी अपने पति पर दहेज उत्पीड़न का केस लगा दिया। जिसके बाद उनका केस सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। जस्टिस एसए बोबडे और जस्टिस एल नागेश्वर राव ने IPC की धारा 498 ए के उन शब्दों पर जोर दिया जिसमें कहा गया है, ‘पति या महिला के पति का रिश्तेदार।’

इसके बाद पीठ ने कहा कि जब किसी मामले में तलाक हो चुका हो, तो वहां धारा 489ए नहीं लागू हो सकता है। इसी तरह से दहेज निषेध अधिनियम 1961 की धारा 3/4 के तहत भी मामला दर्ज नहीं हो सकता। ऐसे में अदालत ने शख्स और उसके परिजनों को न्याय दिलाते हुए अपना फैसला सुनाया।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से पूरा परिवार खुश है और उनका कहना है कि भगवान के घर देर है पर अंधेर नहीं। बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने साल 2016 में उत्तर प्रदेश के जालौन जिले में दर्ज एफआईआर को  रद्द करने के लिए दायर की गई उनकी याचिका खारिज कर दी थी।

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