चारों दिशाओं में बेलगाम होकर दौड़ते भारतीय जनता पार्टी के विजय रथ को रोकने के लिए यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी एक बार फिर सक्रिय हो गई हैं। बेटे राहुल को कांग्रेस की कमान सौंपने के बाद सोनिया गांधी विपक्षी गठबंधन को मजबूत करने की कोशिशों में जुटी हैं। इसी कोशिश के तहत मंगलवार को उन्होंने विपक्षी नेताओं को डिनर पर निमंत्रित किया। इस डिनर पार्टी में लगभग सभी विपक्षी दलों के नेता पहुंचे। कई दलों के प्रमुख आए तो कई दलों के प्रतिनिधियों ने डिनर में शिरकत की।

टीएमसी अध्यक्ष नहीं हुई शामिल

इसके अलावा नहीं आने वालों में टीएमसी की अध्यक्ष ममता बनर्जी और बीएसपी सुप्रीमो मायावती रहीं, लेकिन इनके प्रतिनिधि डिनर में शामिल हुए। मोदी के बढ़ते प्रभाव से कांग्रेस सिमटती जा ही रही है, विपक्ष भी नहीं बचा है। हालात ये है कि आज देश के 21 राज्यों में बीजेपी या बीजेपी नीत गठबंधन की सरकारें हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में सामने आ रहे सर्वे में भी अभी बीजेपी आगे चल रही है।

कई पार्टियों के प्रतिनिधि शामिल

2019 के लोकसभा चुनाव से पहले सोनिया गांधी के इस डिनर डिप्लोमेसी को काफी अहम माना जा रहा है। सोनिया गांधी द्वारा आयोजित किए गए डिनर में कांग्रेस के साथ ही सपा, बीएसपी, टीएमसी, सीपीएम, सीपीआई, डीएमके, जेएमएम, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा, आरजेडी, जेडीएस, केरल कांग्रेस, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, आरएसपी, एनसीपी, नेशनल कांफ्रेंस, एआईयूडीएफ, आरएलडी जैसे दलों के प्रमुख या उनके प्रतिनिधि शामिल हुए।

हाल ही में नीतीश कुमार का साथ छोड़कर लालू के पाले में पहुंचे जीतन राम मांझी भी डिनर में शामिल हुए। वहीं झारखंड में कभी बीजेपी का चेहरा रहे बाबूलाल मरांडी भी डिनर में पहुंचे। आरजेडी की तरफ से राबड़ी देवी और तेजस्वी शामिल हुए। अगर नेताओं और दलों के शामिल होने के नजरिए से आकलन किया जाए तो इस डिनर डिप्लोमेसी को सफल करार दिया जा सकता है, लेकिन फिर सवाल वही उठता है कि शरद पवार और टीआरएस नेता के चंद्रशेखर राव जैसे नेता खुद अपनी तरफ से विपक्षी दलों को एकजुट करने की कोशिशों में भी जुटे हैं। जब विपक्षी नेता ही अलग अलग खेमों में बंटकर विपक्षों को अपने यहां बुलाएंगे तो फिर एकता कहां से हो पाएगी।

डिनर डिप्लोमेसी के सफल होने की 50% संभावना

सोनिया गांधी की इस डिनर डिप्लोमेसी का मकसद बीजेपी के खिलाफ मजबूत विपक्ष का विकल्प खड़ा करना था, लेकिन सवाल उठता है कि सोनिया गांधी अब खुद सक्रिय राजनीति से दूर हो गई हैं तो ऐसे में विपक्षी दल उनके प्रयास से कितने पास आ पाएंगे, ये एक बड़ा सवाल है। साथ ही विपक्षी दलों को ये भी लग सकता है कि सोनिया गांधी कहीं अपने बेटे और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को सर्वमान्य नेता बनाने की तैयारी में नहीं हैं। क्योंकि सोनिया गांधी ये कभी नहीं चाहेंगी कि उनके प्रयास से तैयार होने वाले विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व कोई और करे।

इसके साथ ही विपक्षी दलों के डिनर डिप्लोमेसी को लेकर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। एक ओर शरद पवार भी विपक्षी दलों को एक करने की कोशिशों में जुटे हैं, जिससे जाहिर है कि किसी ऐसे गठबंधन की अगुआई वो खुद ही करना चाहेंगे। इसी तरह टीआरएस प्रमुख के चंद्रशेकर राव भी विपक्षी दलों को एक साथ लाने का प्रयास कर रहे हैं। उधर मोदी को खुलेआम चुनौती देने वाली ममता बनर्जी अगर कोई विपक्षी गठबंधन बनाती हैं तो उसका नेतृत्व किसी दूसरे को सौंप देंगी, इसकी संभावना भी कम ही है।

ऐसे में सवाल उठता है कि जब प्रमुख विपक्षी दल खुद ही अलग अलग मोर्चा बनाने लगेंगे तो फिर विपक्षी दलों का मजबूत गठबंधन बनेगा कैसे और मान लिया कि विपक्षी गठबंधन बन भी जाता है तो उसका नेतृत्व कौन करेगा।

भारतीय सियासत के इतिहास पर नजर डाले तों सत्ता पक्ष के खिलाफ अब तक सिर्फ दो बार ही मजबूत विपक्षी गठबंधन बना है। एक बार जेपी के नेतृत्व में और दूसरी बार वी पी सिंह की अगुआई में, लेकिन फिलहाल विपक्ष के पास जेपी और वीपी जैसे कद के नेताओं का अभाव है और ये बात बीजेपी ही नहीं, विपक्षी दलों और उनके नेताओं को भी अच्छी तरह पता है।

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