रविवार 16 अक्टूबर को अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन में भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) द्वारा दिए गए एक बयान को लेकर लगातार हंगामा जारी है. वित्त मंत्री ने कहा कि भारतीय करेंसी रुपया (Rupee Vs Dollar) नहीं गिर रहा है बल्कि डॉलर (Dollar) मजबूत हो रहा है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और वर्ल्ड बैंक (World Bank) की सलाना बैठक में हिस्सा लेने के लिए वित्त मंत्री इन दिनों अमेरिका के दौरे पर हैं. निर्मला सीतारमण ने कहा कि दुनिया की कई उभरती अर्थव्यवस्थाओं (Emerging Economies) के करेंसी के मुकाबले रुपये का बेहतर प्रदर्शन रहा है.
आज यानि 18 अक्टूबर को एशियाई मुद्राओं (ASIAN Currencies) और शेयरों में उछाल के बाद छह प्रमुख मुद्राओं (यूरो, जापानी येन, ब्रिटिश पाउंड, कैनेडियन डॉलर, स्वीडिश क्रोना और स्विस फ्रैंक) की तुलना में डॉलर की मजबूती को आंकने वाला डॉलर सूचकांक (Dollar Index) जो पिछले सप्ताह के 113 से ऊपर के कारोबार कर रहा था वो अब 111.84 तक आ गया है, इसे सबसे तेज गिरावट माना जा रहा है. हालांकि अमेरिकी डॉलर सूचकांक इस वर्ष अपने 20 साल के उच्च स्तर पर है और इस 2022 में अब तक करीब 15 फीसदी मजबूत हुआ है.
रुपये में भी सुधार
हालांकि भारतीय रुपये में मंगलवार को कुछ सुधार देखा गया, क्योंकि भारतीय रिजर्व बैंक के संभावित हस्तक्षेप के चलते रुपए में कुछ खास गिरावट देखने को नहीं मिली. व्यापारियों के अनुसार, आरबीआई की निरंतर उपस्थिति रुपये के लिए एक बड़ा समर्थन रही है. पिछले सोमवार को एक डॉलर के बदले हमें 82.6825 रुपए चुकाने पड़ रहे थे जो अब तक का रिकॉर्ड था.
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घटता मुद्रा भंडार भी एक चिंता का विषय
लगातार गिरते रुपये के साथ-सात भारत का घटता विदेशी मुद्रा भंडार भी एक चिंता का विषय बन रहा है, क्योंकि विदेशी मुद्रा भंडार में वर्ष की शुरुआत (2022 की शुरूआत) की तुलना में सितंबर के अंत तक 16 फीसदी गिर चुका है. गोल्डमैन सॉक्स के विश्लेषकों के अनुसार यह उभरते हुए एशियाई बाजारों में सबसे बड़ी प्रतिशत गिरावट थी.
हालांकि दो महीने में पहली बार भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 7 अक्टूबर को समाप्त सप्ताह में 204 मिलियन डॉलर बढ़कर 532.87 बिलियन डॉलर हो गया. लेकिन फिर भी ये पिछले साल के 642.5 अरब डॉलर के शिखर की तुलना में अभी भी 17 फीसदी नीचे था.
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आठ साल में डॉलर के मुकाबले कितना कमजोर हुआ भारतीय रुपया?
संसद में केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने जानकारी देते हुए बताया था कि 2014 में जब केंद्र में नई सरकार का गठन हुआ था, तब एक डॉलर की कीमत 63.33 रुपये थी जो 31 दिसंबर 2018 तक गिरकर 69.79 रुपये प्रति डॉलर हो गई. इसके बाद 2019 में ये आंकड़ा 70 रुपया प्रति डॉलर तक पहुंच गया. इसका अर्थ ये हुआ कि 2019 तक एक डॉलर की कीमत 70 रुपया थी जो अब बढ़कर 82 रुपए को पार कर गई है.
एक डॉलर की कीमत कोरोनाकाल में भी 74 के आस पास ही बनी रही. हालांकि, इसके बाद इसमें लगातार तेजी देखने को मिली. संसद में दी गई जानकारी के अनुसार 30 जून 2022 तक एक डॉलर की कीमत 78.94 रुपया हो गई थी. संसद में पेश की गई रिपोर्ट 11 जुलाई 2022 तक के डेटा पर आधारित थी. मतलब 11 जुलाई 2022 तक एक डॉलर की कीमत 79.41 रुपया हो गई थी. आज यानि 18 अक्टूबर 2022 तक एक डॉलर की कीमत 82 रुपया 29 पैसे हो गई है.
पिछले 15 वर्षों में कितना गिरा रुपया
वर्ष | भारतीय रुपया प्रति डॉलर (कमी – या बढ़ोतरी +) |
2007 | 41.34 |
2008 | 43.50 (+2.16) |
2009 | 48.40 (+4.90) |
2010 | 45.72 (-2.68) |
2011 | 46.67 (+0.95 पैसे) |
2012 | 53.43 (+6.76) |
2013 | 58.59 (+5.16) |
2014 | 63.33 (+4.74) |
2015 | 64.15 (+0.82 पैसे) |
2016 | 67.19 (+3.04) |
2017 | 65.12 (-2.07) |
2018 | 69.79 (+4.67) |
2019 | 70.42 (+0.63 पैसे) |
2020 | 74.10 (+3.48) |
2021 | 73.91 (-0.19 पैसे) |
2022 | *82.29 (+8.38) |
*18 अक्टूबर 2022 के अनुसार |
2007 के बाद से 40 रुपए से भी ज्यादा की गिरावट
2007 के बाद से भारतीय मुद्रा रुपए की किमत में कुछ मौकों को छोड़कर लगातार गिरावट जारी है. वर्ष 2007 के बाद से भारतीय रुपया एक डॉलर के मुकाबले 40 रुपए 75 पैसे कमजोर हो चूका है. वहीं इस वर्ष यानि 2022 की बात करें तो एक डॉलर के मुकाबले भारतीय करेंसी में लगभग 7 रुपए 78 पैसे की गिरावट देखी गई है.
क्या है कारण
विदेशी मुद्रा कारोबारियों के अनुसार अमेरिकी बैंक फेडरल रिजर्व द्वारा लगातार की जा रही ब्याज दरों में बढ़ोतरी और यूक्रेन और रूस के बीच चल रहे तनाव के बढ़ने की वजह से निवेशक जोखिम उठाने से बच रहे हैं. वहीं विदेशी बाजारों में अमेरिकी मुद्रा की मजबूती, घरेलू शेयर बाजार में हो रही गिरावट और कच्चे तेल के उत्पादन में कमी के अलावा वैश्विक मंदी की आहट भी रुपये को नाजुक कर रही है.
डॉलर के मुकाबले कैसे तय होती है रुपये की कीमत?
किसी भी देश की मुद्रा की कीमत अर्थव्यवस्था के सामान्य से सिद्धांत, मांग और पूर्ति (Demand and Supply) पर आधारित होती है. मुद्राओं की कीमत दो आधार पर तय की जाती है एक कीमत फॉरेन एक्सचेंज मार्केट में तय की जाती है, वहीं दूसरी फिक्स्ड एक्सचेंज रेट के तहत तय होती है.
फॉरेन एक्सचेंज बाजार में जिस करेंसी की डिमांड ज्यादा होगी उसकी कीमत भी ज्यादा होगी, जिस करेंसी की डिमांड कम होगी उसकी कीमत भी कम होगी. यह पूरी तरह से ऑटोमेटेड है. वहीं फिक्स्ड एक्सचेंज रेट के तहत एक देश की सरकार किसी दूसरे देश के मुकाबले अपने देश की करेंसी की कीमत को फिक्स कर देती है. यह व्यापार बढ़ाने औैर महंगाई को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है.
क्या है पड़ोसी देशों की स्थिति?
अंतरराष्ट्रीय बाजार में अभी एक डॉलर की कीमत 82.29 भारतीय रुपए है. लेकिन पड़ोसी देशों की हालत और भी अधिक खराब है. आर्थिक तंगी से जूझ रहे भारत के पड़ोसी देशों में सिर्फ चीन और बांगलादेश ही अच्छा कर पा रहा है, जहां 7.18 चीनी युआन रॅन्मिन्बी के बराबर एक यूएस डॉलर है वहीं 104.86 बांग्लादेशी रुपए के बराबर एक यूएस डॉलर है. पाकिस्तान में एक डॉलर की कीमत 218.14 पाकिस्तानी रुपया है, इसी तरह श्रीलंका में एक डॉलर 365.11 श्रीलंकाई रुपए के बराबर है. नेपाल के लोगों को एक डॉलर के लिए 131.74 नेपाली रुपया तो वहीं म्यांमार में एक यूएस डॉलर की कीमत 2,095.81 बर्मी क्यात्सो चुकान पड़ते हैं.
अर्थशास्त्रियों के अनुसार ‘रुपया गिरे या डॉलर मजबूत हो. बात एक ही है. लेकिन इन दोनों ही मामलों में भारतीय लोगों को नुकसान हो रहा है. जानकारों के अनुसार वित्त मंत्री सीतारमण कहना चाहती हैं कि भारतीय रुपया अन्य देशों की मुद्रा के मुकाबले ज्यादा कमजोर नहीं हो रहा है. आंकड़े देखें तो पिछले दिनों यूरो, ब्रिटिश पाउंड, ऑस्ट्रेलियन डॉलर, कनेडियन डॉलर, सिंगापुर डॉलर, स्विस, मलेशियन और चीनी करंसी भारत के मुकाबले ज्यादा कमजोर हुईं हैं. यही नहीं, भारतीय रुपया पाउंड, यूरो व अन्य बड़े देशों की करंसी के सामने मजबूत भी हुआ है.