चुनाव आते ही लोगों की जाति पूछी जाने लगती है। तब तक न पार्टियों को जनता से मतलब रहता है और न ही उस जनता के जाति से। कुछ ऐसा ही हाल के दिनों में देखा जाने लगा है। दलित भोज से लेकर अंबेडकर की मूर्ति तक सभी जगह दलित औऱ पिछड़ों को अपनी तरफ खींचने की कोशिश में राजनीतिक पार्टियां लग गई हैं। ऐसे में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कड़ा रुख अपनाया है। उसने साफतौर से निर्देश दिया है कि देश में जाति के आधार पर किसी भी तरह का भेदभाव बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। बता दें कि संघ बीजेपी के दलित भोज से भी काफी खफा है। संघ के अनुसार, राजनीति में जाति का कोई काम नहीं होता और जाति के आधार पर राजनेताओं को राजनीति नहीं करनी चाहिए।
प्रचार प्रमुख अरुण कुमार ने एक बयान में कहा है कि संघ प्रेम और सद्भाव की बुनियाद पर एक जोड़ने वाले समाज के निर्माण के लिए काम कर रहा है, जहां हर कोई बिना किसी जातिगत भेदभाव के सद्भाव के साथ रहे। कुमार ने कहा, ‘हम जाति के आधार पर किसी भी तरह के भेदभाव को स्वीकार नहीं करते। अपनी स्थापना के बाद से ही RSS एक मंदिर, एक कुआं और एक श्मशान भूमि का हिमायती रहा है।’
अरुण कुमार ने मोहन भागवत द्वारा दिए गए उस बयान को झूठा बताया है जिसमें उन्होंने कहा था कि बीजेपी नेताओं के दलितों के घर जाना और उनके साथ खाना समुदाय के उत्थान के लिए पर्याप्त नहीं हैं और नेताओं को दलितों को भी अपने घर बुलाना चाहिए। उन्होंने मीडिया के रिपोर्टों को झूठा बताया है। उनका कहना है कि इस तरह की कोई बात संघ प्रमुख ने नहीं कही।