संसद की लोक लेखा समिति ने हल्के लड़ाकू विमान (एलसीए) तेजस को जल्द से जल्द पूरी तरह युद्ध के लिए तैयार स्थिति में वायु सेना में शामिल किये जाने की सिफारिश की है तथा कहा है कि विदेश से विमानों की खरीद के सौदों में पूर्ण प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को अनिवार्य बनाया जाना चाहिये। समिति की आज लोकसभा में पेश रिपोर्ट में कहा गया है कि उसे इस बात से निराशा हुई है कि तीन दशक बाद भी एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी वायु सेना की जरूरतों के हिसाब से पर्याप्त युद्धक क्षमता वाला स्वदेशी विमान नहीं बना पायी है। इससे समय और धन दोनों की हानि हुई है। एलसीए एमके-1 को पांच साल पहले प्रारंभिक मंजूरी के साथ वायु सेना में शामिल कर लिया गया था, लेकिन उसमें वायु सेना की जरूरत के अनुरूप कई प्रणालियां नहीं होने के कारण अब तक उसे अंतिम मंजूरी नहीं मिल सकी है।

समिति ने विमान विकसित करने वाली इकाई हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) की विनिर्माण क्षमता पर भी सवाल उठाये हैं। उसने कहा है कि एचएएल वायु सेना की माँग के अनुरूप विमानों का विनिर्माण नहीं कर पा रही है। कुल 200 एलसीए बनाने का प्रस्ताव है जिसमें अब तक सिर्फ नौ ही वायु सेना को सौंपे गये हैं। एचएएल अब तक एलसीए का प्रशिक्षण मॉडल भी नहीं बना सकी है।

समिति ने कहा है कि स्वदेशी विमानों के विकास में देरी तथा बड़े हमलों से निपटने की जरूरत के अनुरूप देश में विमान निर्माण की क्षमता नहीं होने के कारण भारत को विदेशों से एफ-16, ग्लोबमास्टर सी-17, सुखोई एसयू-30 और एसयू-35, तथा राफेल जैसे विमान खरीदने पड़ रहे हैं। एलसीए छोटे पैमानों पर हमले तथा मिशनों के ही काम आ सकता है और इसलिए बहुउद्देशीय लड़ाकू विमान विदेशों से खरीदने की जरूरत फिलहाल बनी रहेगी।

रिपोर्ट में सिफारिश की गयी है कि भारत को विदेशों से विमानों की खरीद के लिए सौदे करते वक्त देश के विनिर्माण तथा पूर्ण प्रौद्योगिकी हस्तांतरण का प्रावधान अनिवार्य किया जाना चाहिये ताकि भारतीय विनिर्माण उद्योग भी भविष्य की रक्षा जरूरतों के लिए तैयार हो सके। साथ ही जटिल रक्षा प्रौद्योगिकियों में स्वदेशी अनुसंधान एवं विकास पर ज्यादा जोर दिया जाना चाहिये। इसमें आईआईटी और भारतीय विज्ञान संस्थान जैसे संस्थानों के साथ ही निजी क्षेत्र को भी शामिल किया जा सकता है। इसमें विमानों के साथ कलपुर्जों के विनिर्माण पर भी ध्यान दिया जाना चाहिये ताकि अंतत: देश रक्षा जरूरतों के लिए आत्मनिर्भर बन सके।

-साभार, ईएनसी टाईम्स

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