बैंकिंग सेवा का भी धर्म के आधार पर दो फाड़ हो जाता लेकिन समय रहते आरबीआई ने इसे रोक लिया। भारतीय रिजर्व बैंक ने शरीया सिद्धातों पर आधारित बैंकिंग प्रणाली को देश में लाने से मना कर दिया। आरबीआई के अनुसार सभी नागरिकों को वित्तीय और बैंकिंग सेवाओं के समान अवसर की सुलभता को ध्यान में रखते हुए यह फैसला लिया गया है। दरअसल, एक आरटीआई के माध्यम से आरबीआई से इस्लामिक (शरिया) बैंकिंग प्रस्ताव पर सवाल पूछा गया था। सवाल का जवाब देते हुए आरबीआई ने कहा कि देश में इस्लामिक बैंक लाने के प्रस्ताव को अस्वीकार करने का फैसला लिया गया है क्योंकि देश के हर नागरिक को बैंकिंग और अन्य किसी भी प्रकार के वित्तीय सेवाएं विस्तृत और समान रूप से उपलब्ध है।

बता दें कि इस्लामिक बैंकिंग ऐसी व्यवस्था है जिसमें ब्याज का प्रावधान नहीं होता अर्थात् ऐसे बैंकों में न ब्जाज लिया जाता है और न दिया जाता है क्योंकि शरिया के सिद्धांतों के अनुरूप ब्याज लेना या देना हराम माना जाता है। इस्लाम बैंकिंग का कॉन्सेप्ट इस्लाम के बुनियादी उसूल इंसाफ और सामाजिक न्याय पर आधारित है। दुनियाभर में ऐसे 50 देश हैं जहां इस्लामिक बैंक का कॉन्सेप्ट चलता है।

इससे पहले अनुमान लगाया जा रहा था कि देश में इस्लामिक बैंकिंग की व्यव्सथा भी लागू होगी। रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन की अध्यक्षता वाली एक समिति ने 2008 में देश में ब्याज-रहित बैंकिंग के मुद्दे पर गहराई से विचार करने की जरूरत पर जोर दिया था जिसके बाद इस्लामिक बैंकिंग विषय पर सरकार ने रिपोर्ट मांगी थी। आरबीआई ने पिछले साल फरवरी में आईडीजी रिपोर्ट की एक कॉपी वित्त मंत्रालय को भेजी और धीरे-धीरे शरिया बैंकिंग सिस्टम शुरू करने के लिए बैंकों में ही एक इस्लामिक विंडो खोलने का सुझाव दिया था। बाद में रिजर्व बैंक और भारत सरकार ने देश में इस्लामिक बैंकिंग की शुरुआत का परीक्षण किया और यह नतीजा निकाला कि  देश में इस्लामिक बैंकिंग शुरू करने के प्रस्ताव पर आगे कोई कदम नहीं उठाया जाएगा।

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