1857 के स्वतंत्रता सेनानियों में रानी लक्ष्मीबाई थीं सबसे खतरनाक, अंग्रेजों ने खुद बताई थी इसकी वजह…

Rani Lakshmibai Death Anniversary: रानी लक्ष्मीबाई से लड़ने के बाद अंग्रेजों ने इस वीरांगना की जमकर तारीफ की थी। रानी को पहले स्वतंत्रता संग्राम की नायिका...

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Rani Lakshmibai Death Anniversary
Rani Lakshmibai Death Anniversary

Rani Lakshmibai Death Anniversary: कोई अपने दुश्मन की तारीफ कब करता है? ऐसा तब ही होता है जब दुश्मन आपका लोहा मान जाए। कम ही लोग जानते होंगे कि रानी लक्ष्मीबाई से लड़ने के बाद अंग्रेजों ने इस वीरांगना की जमकर तारीफ की थी। रानी लक्ष्मीबाई को पहले स्वतंत्रता संग्राम की नायिका के तौर पर याद किया जाता है…

Rani Lakshmibai Death Anniversary: खूबसूरती और बहादुरी का संगम थी लक्ष्मीबाई

अंग्रेजों ने रानी लक्ष्मीबाई की बहादुरी, होशियारी और राजकाज की समझ की जमकर तारीफ की थी। अंग्रेज सिर्फ रानी की बहादुरी ही नहीं बल्कि उनकी खूबसूरती के भी कायल हो गए थे। ब्रिटिश सेना के सेनापति सर ह्यूग रोज ने लिखा, ”She was a man among mutineers”. वहीं ब्रिटिश भारत के पहले वायसराय लॉर्ड कैनिंग ने लिखा, “वह पुरुष की तरह सजती थीं और पगड़ी पहनती थीं। बहुत सुंदर तो नहीं पर उनकी आंखें और शरीर की बनावट बहुत अच्छी थी।”

लॉर्ड कंबरलैंड ने कहा, “रानी को उनकी बहादुरी, चतुराई और दृढ़ता के लिए याद रखा जाएगा। अपनी प्रजा के प्रति उनकी उदारता असीम थी। इन गुणों ने उन्हें सभी विद्रोहियों में सबसे खतरनाक बना दिया था।” वांडरिंग्स इन इंडिया (1859) में जॉन लैंग लिखते हैं, “वह बहुत सुंदर महिला थीं। रानी की आंखें ठीक थीं और नाक बहुत नाजुक आकार की थी। वह गोरी नहीं थी और काली भी नहीं थी।” लैंग ने लिखा, “उनकी पोशाक सादे सफेद मलमल की थी, बनावट में इतनी महीन कि उनके शरीर की रूपरेखा स्पष्ट रूप से समझ में आती थी।”

विद्रोह के समय लक्ष्मीबाई की उम्र के बारे में कुछ संदेह है। क्रिस्टोफर हिबर्ट ने ग्रेट म्यूटिनी (1978) में कहा है कि वह 30 से 35 साल की थीं लेकिन अन्य लोगों ने रानी की उम्र 23 साल बताई। सर रॉबर्ट हैमिल्टन की राय में, रानी एक “सभ्य, विनम्र और चतुर युवा महिला” थीं, जिसमें एक अच्छा शासक बनने के सभी गुण थे।

गौरतलब है कि गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी ने रानी के दत्तक पुत्र को झांसी के सिंहासन के उत्तराधिकारी के रूप में स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। इससे रानी को झटका लगा। बाद में झांसी में बाहर के विद्रोहियों ने प्रवेश किया और यूरोपीय नागरिक और सैन्य अधिकारियों की हत्या कर दी। बौखलाए गवर्नर जनरल ने इसे रानी की साजिश समझा और उसे सबक सिखाने का फैसला किया। मार्च 1958 में सर ह्यू रोज़ के अधीन एक सेना झांसी पहुंची। रानी ने शहर छोड़ दिया और आक्रमणकारियों ने प्रतिशोध में 5,000 नागरिकों को मार डाला।

3 बॉम्बे लाइट कैवलरी के कॉर्नेट कॉम्बे ने लिखा, ”अंग्रेजों ने उसका पीछा किया। हालांकि उसके अधिकांश साथी मारे गए, लेकिन वह हर बार बच निकलने में सफल रही। वह एक अद्भुत महिला थी, बहुत बहादुर और दृढ़ निश्चयी। यह हमारे लिए सौभाग्य की बात है कि कोई दूसरा उसके जैसा नहीं था।”

18 जून को कोटा की सराय में रानी को घेर लिया गया। वह अपने मुंह से घोड़े की लगाम पकड़ते हुए दोनों हाथों से अपनी तलवार पकड़कर जमकर लड़ीं। आखिरकार, उन्हें 8वीं हुसर्स के एक सैनिक द्वारा पीठ में गोली मार दी गई। फिर रानी के सिर पर तलवार से जोर से वार किया गया और उनका माथा फट गया । इस तरह रानी ने दुनिया को अलविदा कहा।

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