केदारनाथ आपदा को 10 साल बीत चुके हैं। आज भी लोग जब इस आपदा के बारे में सोचते हैं तो उनकी रूह कांप जाती है। एक आंकड़े के मुताबिक इस आपदा में 5 हजार लोगों की मौत हुई थी। ईकोलॉजिस्ट चंद्रप्रकाश काला के मुताबिक इस आपदा से पुल और सड़कों को कुल 28 करोड़ अमेरिकी डॉलर, बांध निर्माण को 3 करोड़ अमेरिकी डॉलर और राज्य के पर्यटन को 19 करोड़ अमेरिकी डॉलर का नुकसान हुआ। यानी आज के हिसाब से इस आपदा से कुल 4 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था। इतने बड़े नुकसान का समय के साथ विश्लेषण भी हुआ। लेकिन कई लोगों के मन में आज भी यह सवाल है कि आखिर इतनी बड़ी आपदा आई कैसे?
कब क्या हुआ?
दरअसल साल 2013 में 13 से 17 जून के बीच उत्तराखंड में असामान्य वर्षा हुई। जिओलॉजी के मुताबिक केदारनाथ घाटी और उसके आसपास का हिमालयी क्षेत्र बहुत नाजुक है। 2013 में मानसून उत्तराखंड में बहुत जल्दी आ गया था। 15 जून की सुबह तक केदारनाथ में मूसलाधार बारिश होने लगी थी। 17 जून को भयंकर बारिश का खतरा बताया गया। मौसम विभाग ने इस बारे में चेतावनी जारी की। यहां तक कि 16 जून तक सबने कह दिया कि उत्तराखंड में स्थिति बादल फटने की सी है।
उत्तराखंड में हुई 375% ज्यादा बारिश
आपको बता दें कि 16 जून से बंगाल की खाड़ी के ऊपर कम दबाव के क्षेत्र के आसपास एक साइक्लोनिक सर्कुलेशन बनने लगा। जो पश्चिम की ओर बढ़ रहा था। वहीं बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से मिल रही नमी के चलते ये सर्कुलेशन तेज हो गया। इसके अलावा उत्तर दिशा से आने वाले तीव्र पश्चिमी विक्षोभ ने इसे और भंयकर रूप दे दिया। नतीजा ये हुआ कि उत्तराखंड और आसपास के क्षेत्रों में भारी वर्षा हुई। जो कि सामान्य मानसून से 375% अधिक थी। 16 जून तक बारिश इतनी हुई कि केदरानाथ में बाढ़ आ गयी। 16 जून को मंदाकिनी नदी रामबाड़ा को अपने साथ बहा ले गई।
केदारनाथ में कैसे हुई तबाही?
दरअसल चोराबारी ग्लेशियर के आसपास कई सालों से पत्थर और कचरा जमा हो गए थे। जिससे एक बांध सा बन गया। इसके चलते चोराबारी में बहुत सा पानी जमा हो गया था। क्योंकि इसके निकलने का रास्ता नहीं था। एक अनुमान के मुताबिक इस झील में 160 करोड़ लीटर पानी था। लगातार हो रही बारिश से 17 जून के शुरुआती घंटों में चोराबारी झील में पानी बढ़ने लगा। कुछ का मानना है कि झील के किनारे ग्लेशियर टूट गया। जब मूसलाधार बारिश हुई तो पानी के साथ बड़े पत्थर गिरे। जिससे किनारे टूट गए। झील का बांध टूट जाने से पानी की लहर बनी और सैलाब नीचे की ओर आने लगा। हालांकि इस सैलाब में महज पानी ही नहीं था बल्कि पत्थर और मिट्टी भी थे। इस सैलाब के रास्ते में जो आया तबाह हो गया। सबसे अधिक नुकसान केदारनाथ घाटी में हुआ। केदारनाथ में जो सैलाब आया उसकी ऊंचाई 10 फुट के आस-पास बताई गई। इस सैलाब से केदारनाथ के नीचे का क्षेत्र बह गया। स्थिति ये थी कि चोराबारी झील का सारा पानी खत्म हो गया था।
आपको बता दें कि इस क्षेत्र में सैलाब, भूकंप और भूस्खलन का खतरा हमेशा रहता है। 2013 से पहले भी यहां 1893, 1968 और 1970 में भी आपदा आई थी। पर्यावरणविदों का मानना है कि केदरानाथ आपदा मानवीय कृत्यों के चलते आई थी। गलत तरह से इमारतों का निर्माण,पर्यटन के नाम पर चीजों के कुप्रबंधन ने इस आपदा को इतना भयावह बना दिया था।