राष्ट्रीय जैविक प्राधिकरण (एनबीए) के सदस्य तथा गैर-सरकारी संगठन बायो-लिंक्स के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. राई एस. राणा का मानना है कि योग गुरु बाबा रामदेव की कंपनी दिव्य फार्मेसी के खिलाफ उत्तराखंड उच्च न्यायालय के फैसले का दूरगामी प्रभाव होगा तथा देश के अन्य हिस्सों में भी जैव विविधता के संरक्षण में मदद मिलेगी। डॉ. राणा ने यहां एक कार्यक्रम में बताया कि जैव विविधता अधिनियम, 2002 के दूसरे चैप्टर में यह लिखा है कि अनुसंधान या किसी भी वाणिज्यिक उद्देश्य से देश के जैविक संसाधनों के इस्तेमाल के लिए विदेशी कंपनियों को एनबीए की अनुमति लेनी होगी। जिस कंपनी के नियंत्रक, मालिक या हिस्सेदार विदेशी या प्रवासी भारतीय हैं उन्हें भी पूर्वानुमति लेनी होगी। लेकिन, पूरी तरह भारतीय कंपनियों के लिए पूर्वानुमति की आवश्यकता नहीं होगी। उन्हें सिर्फ इसके बारे में एनबीए को पूर्व जानकारी देनी होगी।

उन्होंने बताया कि उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने दिव्य फार्मेसी के इस तर्क को खारिज कर दिया कि चूँकि भारतीय कंपनियों को पूर्वानुमति की आवश्यकता नहीं है इसलिए उन्हें जैव विविधता पर संयुक्त राष्ट्र के उस समझौते से भी छूट मिल जाती है जिसमें कहा गया है कि इन संसाधनों का इस्तेमाल करने वाली कंपनी अपने मुनाफे में से कुछ स्थानीय किसानों और स्थानीय लोगों के साथ साझा करना होगा जो उसके संरक्षक हैं। भारत भी संयुक्त राष्ट्र के इस समझौते का सदस्य है।

पिछले सप्ताह दिये अपने फैसले उच्च न्यायालय ने दिव्य ज्योति को उसके 421 करोड़ के मुनाफे में से दो करोड़ किसानों और स्थानीय लोगों को देने का आदेश दिया है। डॉ. राणा ने कहा कि यह फैसला भविष्य में ऐसे सभी मामलों के लिए नजीर का काम करेगा। उन्होंने कहा यह सिर्फ पैसे की या मुनाफे में हिस्सेदारी की बात नहीं है। इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि कोई भी कंपनी मनमाने तरीके से जैव संसाधनों का दोहन नहीं कर सकती। साथ ही यदि बाबा रामदेव की कंपनी उच्चतम न्यायालय में जाती है तो शीर्ष अदालत का जो भी फैसला आयेगा वह पूरे देश पर लागू होगा।

उन्होंने कहा कि जैविक संसाधनों को इस्तेमाल इस प्रकार करना जरूरी है कि उनका संरक्षण भी हो और वे लंबे समय तक उपलब्ध रहें। इसीलिए कंपनियों के मुनाफे में उन किसानों तथा स्थानीय लोगों के साथ मुनाफा साझा करने का प्रावधान है जो वास्तव में उन संसाधनों का संरक्षण करते हैं।

-साभार, ईएनसी टाईम्स

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