यूपी के शिक्षामित्रों का संग्राम जारी है… हजारों की संख्या में शिक्षा मित्र सड़क पर हैं…सालों से मेहनत किया अब पानी फिर गया.. तो आंदोलन ही आखिरी रास्ता बना लिया.. समायोजन का मुद्दा सरकार, सियासत, अदालत के बीच पेंडुलम की तरह घूमता रहा है… सरकार से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक गुहार लगाई लेकिन निराशा हाथ लगी.. हर चौखट पर निराशा हाथ लगने के बाद अब अनशन पर बैठे हुए हैं..

लखनऊ के लक्ष्मणमेला मैदान में शिक्षा मित्र डेरा डाले हुए हैं.. जब से समायोजन रद्द हुए हैं तब से 500 से ज्यादा शिक्षामित्रों की मौत हो चुकी है…हड़ताल पर बैठे शिक्षामित्रों का कहना है कि जब दस हजार के मानदेय पर काम करते हैं तो पढ़ाने योग्य हो जाते हैं जब मानदेय बढ़ाने की बात कहते हैं तो अयोग्य करार दिए जाते हैं…कई शिक्षामित्र उम्रदराज हो चुके हैं जो लिखित परीक्षा देने में असमर्थ हैं..

कब कब क्या क्या हुआ?

26 मई 1999 को एक आदेश जारी किया गया

आदेश जारी होने के बाद शिक्षामित्र नियुक्त हुए

संविदा पर आधारित ये भर्तियां कम योग्यता और कम वेतन पर हुईं

1 जुलाई 2001 को सरकार ने योजना का दायरा बढ़ाया

जून 2013 में 172000 शिक्षामित्रों को सहायक शिक्षक के तौर पर समायोजित करने का निर्णय

सरकार के इस फैसले को हाईकोर्ट में दी गई चुनौती

हाईकोर्ट ने 12 सितंबर 2015 को शिक्षामित्रों का समायोजन रद्द कर दिया

जरूरी योग्यता न होने के आधार पर समायोजन रद्द किया गया

शिक्षामित्र और राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की

25 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाएं खारिज कर दी

सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें  38, 878 के बजाए महज दस हजार रुपए का मानदेय देने को कहा

शिक्षामित्रों ने पुनर्विचार याचिकाएं दाखिल की

कोर्ट ने 31 जनवरी को 2018 याचिकाएं खारिज कर दिया

वोट के लालच में नेता जनता को झूठे आश्वासन दे देते हैं… बेरोजगारों को नौकरी दे तो देते हैं लेकिन बात कोर्ट तक पहुंचने पर पोल खुल जाती है तो सरकारें पल्ला झाड़ लेती है.. शिक्षामित्रों पर सियासी पार्टियां रोटियां तो सेक रही हैं लेकिन इनके दर्द की दवा कोई नहीं बता पा रहा है… इंसाफ की गुहार लगा रहे शिक्षामित्रों की पुकार कौन सुनेगा..

-एपीएन ब्यूरो

1 COMMENT

  1. यही रवैया सरकार का रहा 2019 में भाजपा वोट तक जनता से नही मांग पयेगी ।
    तानाशाही ज्यादा समय नही रहेगी

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