भारत इस समय कोरोना महामारी के भयंकर प्रकोप से पीड़ित है। देश में 24 घंटे के भीतर 2.67 लाख कोरोना के नए केस सामने आए हैं वहीं 4529 मरीजों की मौत हुई है। बढ़ते संक्रमण और मौत पर लगाम लगाने के लिए केंद्र सरकार हर मुमकिन कोशिश कर रही है। कोरोना इलाज को लेकर नई-नई दवाओं पर शोध किया जा रहा है। इसके साथ ही कोरोना इलाज को लेकर बड़ा बदलाव किया जा रहा है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) की सलाह के बाद कुछ दिन पहले ही इलाज प्रोटोकॉल से प्लाज्मा थेरेपी को हटाया गया था। वहीं अब खबर है कि, रेमडेसिवीर इंजेक्शन को हटाने की तैयारी चल रही है।

गंगा राम अस्पताल के अध्यक्ष डॉ डीएस राणा ने मंगलवार को कहा कि रेमडेसिवीर को भी जल्द ही कोविड​​​​-19 के इलाज से हटाने पर विचार किया जा रहा है। दरअसल, कोविड-19 रोगियों के इलाज में इसकी प्रभावशीलता का कोई सबूत नहीं है। राणा ने कहा कि कोरोना के इलाज में रेमडेसिविर के इंजेक्शन के असर के बारे में कोई पुख्ता सबूत नहीं मिले हैं।

बता दें कि, रेमडेसिवीर वही इंजेक्शन है जिसकी मांग मेडिकल की दुनिया में सबसे अधिक है। एक-एक इंजेक्शन की कीमत 50 हजार होती है। इसकी कालाबाजारी भी जमकर हो रही है। जमाखोरी और कालाबाजारी को रोकने के लिए सरकार ने भी कई पुख्ता कदम उठाए थे। कोरोना की दूसरी लहर में रेमडेसिवीर की मांग बहुत है। इसी से कोरोना मरीजों का लंबे समय से इलाज चल रहा था लेकिन अब इसे भी इलाज के दायरे से बाहर करने पर विचार किया जा रहा है।

बता दें कि, ये वही दवा है जब 2014 में इबोला अफ्रीकी देशों में महामारी बनकर फैला। उसके इलाज में इसका इस्तेमाल हुआ। ये उसमें असरदार भी दिखी।

इसके बाद भी WHO ने इस दवा को कोरोना महामरी के दौरान इस्तेमाल करने की मान्यता नहीं दी है। इसे लेकर ICMR की अलग अवधारणा है, राज्य की एक अलग सोच है। जनता को पता नहीं है। जनता को लगता है कि, रेमडेसिविर उन्हें कोविड-19 से बचा सकता है। एक समय पर इस दवा का खूब प्रचार किया गया था। लेकिन जब बात जरूरत की आई तो भारतीय बाजार स ये गायब ही हो गया है। अब इलाज से भी गायब हो सकती है।

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