राजस्थान के जैसलमेर का पोखरण कस्बा आज फिर से सुर्खियों में है। 18 मई 1974 को भारत के अपने पहले परमाणु परीक्षण के बाद यह विश्व मानचित्र पर आ गया था। ठीक 43 वर्ष बाद बृहस्पतिवार को पोखरण एक बार फिर से दुनिया की निगाहों में होगा, जब भारतीय सेना अमेरिका के बीएई सिस्टम से मिली दो हॉवित्जर तोप का परीक्षण करेगी।

आज ही के दिन 1974 में पोखरण में पहला परीक्षण कर भारत ने दुनिया को चौंका दिया था इस परीक्षण के सफल होने के बाद वैज्ञानिकों ने कोड वर्ड में इसकी सफलता का सन्देश देते हुए प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी को बताया था कि बुद्धा इज स्माइलिंग। परमाणु परीक्षण में जिस बम का इस्तेमाल किया गया था ​उसका वजन 1400 किलोग्राम था। यह परीक्षण पोखरण के मल्का गांव के एक सूखे कुएं में किया गया था। भारत संयुक्त राष्ट्र का सदस्य न होते हुए ऐसा करने वाला पहला देश बना था। आज एक बार फिर यह इतिहास दोहराया जाना है।

यह परीक्षण इसलिए और भी महत्वपूर्ण है क्योंकि बोफोर्स पर विवाद के तीस साल बाद भारतीय सेना में यह  तोप शामिल हो रही है। 2900 करोड़ की इस डील के तहत अमेरिका भारत को 145 नई तोपें देगा। करार के मुताबिक, पहली 25 तोपें इंपोर्ट की जाएंगी, जबकि बाकी तोपें ‘मेक इन इंडिया’ के तहत भारत में ही असेंबल की जाएंगी। इसके लिए अमेरिकी निर्माता कंपनी ने भारतीय कंपनी महिंद्रा को अपना बिजनस पार्टनर भी बनाया है।

ऑप्टिकल फायर कंट्रोल वाली हॉवित्ज़र से तक़रीबन 24 से 40 किलोमीटर दूर स्थित टारगेट पर सटीक निशाना साधा जा सकता है और यह तोप एक मिनट में 5 राउंड फायर करती हैं। टाइटेनियम से बना होने के कारण इसका वजन भी सामान्य तोपों से हल्का है। लगभग 4 टन के इस तोप को अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों पर आसानी से तैनात किया जा सकता है। भारत सरकार का इसे लद्दाख,चीन और पाकिस्तान सीमा पर तैनात करने की योजना है।

गौरतलब है कि 1986 में बोफोर्स तोपों की खरीद के बाद इसके सौदे में दलाली के आरोपों ने भारतीय राजनीति में बड़ा विवाद खड़ा कर दिया था जिसके बाद नयी तोपों को खरीदने में करीब 3 दशक का वक्त लग गया। 26 जून 2016 को फॉरेन मिलिट्री सेल्स (एफएमएस) के तहत भारत सरकार और अमेरिकी सरकार के बीच हुए 2900 करोड़ रुपये के इस सौदे पर नवंबर 2016 में अंतिम मुहर लगी और 145 तोपों के लिए अमेरिकी कंपनी बीएई सिस्टम्स के साथ डील पक्की हो गयी।

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