भारत- पाक बटवारे के बाद भारत में बसे शरणार्थियों ने सुप्रीम कोर्ट में संविधान के अनुच्छेद  35को चुनौती दी है। बता दें कि ये शरणार्थी सन् 1947 में भारत-पाक बंटवारे के वक्त पश्चिमी पाकिस्तान से आकर जम्मू-कश्मीर में बसे थे।

दरअसल इस अनुच्छेद के तहत जम्मू-कश्मीर के स्थाई निवासियों को विशेष अधिकार और लाभ मिलते हैं। कश्मीरी पंडित समाज की महिला डॉक्टर चारू डब्ल्यू खन्ना ने भी न्यायालय में इस प्रावधान को चुनौती दी है। याचिका दायर करने वाले काली दास, उनके पुत्र संजय कुमार और एक अन्य ने अपने आवेदन में कहा है कि वह अपने लिए मूल नैसर्गिक और मानवाधिकार चाहते हैं, जो फिलहाल उन्हें प्राप्त नहीं हैं।

याचिका में कहा गया है कि पश्चिमी पाकिस्तान से करीब तीन लाख शरणार्थी आये थे। लेकिन उनमें से जो लोग जम्मू-कश्मीर में बसे उन्हें अनुच्छेद 35ए के तहत वह अधिकार नहीं मिले जो राज्य के मूल निवासियों को प्राप्त हैं।

याचिका में कहा गया है, ‘‘याचिका दायर करने वाले वे लोग हैं जो 1947 में पाकिस्तान से आव्रजन हो कर भारत आये थे। सरकार ने उन्हें आश्वासन दिया था कि वे जम्मू-कश्मीर राज्य में बसें और उन्हें राज्य का स्थाई निवास प्रमाणपत्र दिया जाएगा। यह प्रमाणपत्र उन्हें राज्य में संपत्ति और अपना मकान खरीदने, सरकारी नौकरी पाने, आरक्षण का लाभ लेने और राज्य तथा स्थाई निकाय चुनावों में वोट डालने का अधिकार देगा। यहां बसने वाले ज्यादातर लोग एससी, एसटी, ओबीसी श्रेणी से आते हैं।’’

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति डी. वाई चन्द्रचूड़ ने जम्मू-कश्मीर के कठुआ जिले में बसे इन शरणार्थियों की याचिका को इस मामले से संबंधित अन्य याचिकाओं के साथ शामिल कर लिया है। हालांकि जम्मू-कश्मीर सरकार के अनुरोध पर उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 35ए को चुनौती देने वाली इन याचिकाओं पर दिवाली के बाद सुनवाई करने का फैसला किया है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here