भारत सरकार ने लगता है पीओके पर कुछ ठोस करने का मन बना लिया है। देश को आजाद हुए सत्तर सालों से उपर हो गये, लेकिन पीओके का मसला अभी लटका हुआ ही है। इस मसले को जड़ से ही खत्म करने की दिशा में सरकार ने एक कदम बढ़ा दिया है। सरकार के आदेश पर मौसम विभाग ने पीओके को अपनी रिपोर्ट में शामिल कर लिया है। अब दूरदर्शन और आकाशवाणी ने प्राइम टाइम समाचार बुलेटिन में.. पीओके के इन क्षेत्रों के मौसम का हाल बताना शुरू कर दिया है.. इससे तिलमिलाए पाकिस्तान के विदेश कार्यालय ने एक बयान में कहा.. कि भारत द्वारा पिछले साल जारी किए गए कथित ‘राजनीतिक नक्शे’ की तरह ही उसका ये कदम भी निरर्थक है.. पाकिस्तान की बौखलाहट ऐसा वक्त में सामने आई है.. जब देश में मौसम का पूर्वानुमान बताने वाली संस्था.. भारतीय मौसम विभाग ने.. जम्मू-कश्मीर के अपने मौसम संबंधी सब-डिविजन का उल्लेख.. जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, गिलगित-बाल्टिस्तान और मुजफ्फराबाद’ के रूप में करना शुरू कर दिया..

IMD के महानिदेशक एम महापात्र के मुताबिक.. जब से जम्मू कश्मीर दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित हुआ है.. उसके बाद से ही पीओके के तहत इन क्षेत्रों के लिए दैनिक बुलेटिन में उल्लेख करते रहे हैं..  पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में स्थित इन शहरों का जिक्र.. अब उत्तर पश्चिम डिविजन के संपूर्ण पूर्वानुमान में हो रहा है.. इस कदम का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है.. क्योंकि भारत लगातार ये कहता आया है.. कि, पीओके भारत का अभिन्न अंग है.. जिस पर पाकिस्तान ने जबरन कब्जा कर रखा है..

30 अप्रैल को पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने.. पाकिस्तान के कब्जे वाले गिलगित-बाल्टिस्तान में चुनाव कराए जाने के आदेश दिया था.. इसका भारत ने कड़ा विरोध किया था.. पाकिस्तान के सामने कड़ी आपत्ति दर्ज कराई गई थी.. भारत ने कहा था कि, पाकिस्तान ने पीओके पर अवैध तरीके से कब्जा किया है.. उसे तुरंत इसे खाली कर देना चाहिए.. भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा था कि पूरे जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के अलावा गिलगित-बाल्टिस्तान भी भारत का अभिन्न हिस्सा है.. भारत ने पाकिस्तान से कहा था कि भारतीय संसद से 1994 में पास एक प्रस्ताव में जम्मू-कश्मीर पर स्थिति साफ है.. विदेश मंत्रालय ने ये भी कहा कि पाकिस्तान के हालिया कदम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के कुछ हिस्सों पर उसके ‘अवैध कब्जे’ को छुपा नहीं सकते हैं.. और ना ही इस पर पर्दा डाल सकते हैं कि पिछले सात दशकों से इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के ‘मानवाधिकारों का उल्लंघन किया गया, शोषण किया गया और उन्हें स्वतंत्रता से वंचित’ रखा गया..

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