Naxalism History: देश में कब, कहां और क्यों पनपा नक्सलवाद? जानें इसकी पूरी कहानी

छत्तीसगढ़ में कब-कब हुए नक्सली हमले?

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Naxalism History: देश में नक्सलवाद ने पिछले कई सालों में बड़ी तबाही मचाई है। सैकड़ों जवानों की शहादत, कई बड़े नेताओं की हत्या और आय दिन रह-रह के फन उठाना इस नक्सलवाद रूपी सांप का काम बन गया है। कई बार सुरक्षाकर्मियों के द्वारा की गई कार्रवाई में इस नक्सलवाद के आतंक को गहरी चोट भी पहुंची लेकिन खत्म होने के बजाए ये फिर एक ऐसे नासूर बनकर सामने आते हैं जो रह-रह कर देश को दर्द देने का काम करते हैं। नक्सलवाद को देश के ऊपर बाहर से हमला करने वाले आतंकियों से भी ज्यादा खतरनाक माना जाता है क्योंकि ये घर(देश) के अंदर ही रहकर घर के लोगों को ही छुपकर मारने का कायरतापूर्ण काम करते हैं। इन्हें पहचानना थोड़ा मुश्किल होता है।

ताजा मामला छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा का है। यह क्षेत्र नक्सल प्रभावित है। 26 अप्रैल दिन बुधवार को डिस्ट्रिक रिजर्व गार्ड(डीआरजी) की एक गाड़ी को नक्सलियों ने रास्ते में आईईडी लगाकर उड़ा दिया। इसमें एक चालक समेत डीआरजी के 10 जवान शहीद हो गए। इस कायराना हमले ने एक बार फिर से देश की सरकार, सेना समेत लोगों में नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई को तेज करने की मांग बढ़ा दी है। इन सबके बीच अब सवाल यह उठता है कि आखिरकार यह नक्सलवाद है क्या? यह देश में कब, कैसे, कहां और क्यों पनपा? तो आइए जानते हैं इस नक्सलवाद की पूरी कहानी…

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Naxalism History:नक्सलवाद की शुरुआत

अपने देश भारत में नक्सलवाद की शुरुआत का जड़ पश्चिम बंगाल के एक गांव नक्सलबाड़ी को माना जाता है। यहां साल 1967 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता चारू माजूमदार और कानू सान्याल ने सरकार के खिलाफ एक मुहिम छेड़ी। वे दोनों ही चीन के कम्युनिस्ट नेता माओत्से तुंग(माओ जेडॉन्ग) से काफी प्रभावित थे। यह मुहिम नक्सली आंदोलन के रूप में जाना गया और बहुत ही कम समय में देश के कई हिस्सों में फैल गया। इस आंदोलन में वे लोग शामिल थे जो सरकार के खिलाफ थे और जमींदारों के अत्याचारों से परेशान हो चुके थे। इस आंदोलन के लोगों ने अपने हक और हकूक के लिए सरकार के खिलाफ खुद हथियार उठा लिया। माओत्से तुंग से प्रभावित होने के कारण नक्सलवाद को माओवाद भी कहा जाता है।

इस आंदोलन में शामिल नेताओं का अपने लोगों के लिए एक ही सिद्धांत होता है कि वे सीधे तौर पर सरकार को चुनौति या सरकार से लड़ाई नहीं लड़ सकते हैं इसीलिए वे मनोवैज्ञानिक तौर पर घात लगाकर हमला करते हैं। वे इसे सरकार पर नहीं बल्कि उसकी इच्छाशक्ति पर हमला मानते हैं। चूंकि सरकार इन नक्सलियों से निपटारे के लिए जवानों को तैनात रखती है इसीलिए नक्सली सरकार के साथ-साथ जवानों को भी अपना दुश्मन मानते हैं।

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Naxalism History:आंदोलन के साथ ही बनाई पार्टी
कहा जाता है कि नक्सलबाड़ी से धधकी यह आंदोलनरूपी आग देखते ही देखते देश के कई हिस्सों में फैल गई। इससे जुड़े लोगों ने साल 1969 में सीपीआई(एमएल) नाम की एक पार्टी भी बना ली जिसके महासचिव चारू माजूनदार बने। पार्टी बनते ही इनका सिद्धांत देश के कई क्षेत्रों में तेजी से फैलने लगा। इस मुहिम में वे लोग तेजी से जुड़ते गए जो किसी न किसी कारण से या तो सरकार द्वारा प्रताड़ित किए गए थे या फिर जमींदारों के द्वारा परेशान थे। इसके बाद इन्होंने साल 2004 में पूरे कम्युनिस्टों के लिए एक पार्टी या संगठन और बनाई जिसका नाम था कम्युनिस्ट पार्टी(माओवादी)। इसने सरकार की और चिंता बढ़ा दी क्योंकि ये एक राजनीतिक पार्टी थी।

Naxalism History:उद्देश्य और लड़ाई के तरीके
जैसे किसी राजनीतिक दल का नेता अपनी पार्टी की जीत के लिए लोगों को अपने भाषणों से प्रभावित करता है ठीक वैसे ही नक्सली नेता अपने तीखे और जबरदस्त भाषणों से सरकार के द्वारा सताए, तड़पाए गए लोगों को अपने दल में शामिल करने की कोशिश करते हैं। ज्यादातर मामलों में वे कामयाब भी हो जाते हैं। नक्सलवाद से सरकार के खिलाफ लड़ाई में वहीं लोग जुड़ते हैं जो हथियार के बल पर अपने हक और अधिकार के लिए लड़ते हैं।

बात अब लड़ाई के तरीके की। तो नक्सली जंगलों में छिपकर ज्यादातर अपनी लड़ाई लड़ते हैं और अपने ऑपरेशन को अंजाम देते हैं। देश के जिन-जिन हिस्सों में नक्सलियों ने अपना गढ़ बनाया है उसके लिए इनके तगड़े नेटवर्क को बड़ा माना जाता है। कहा यह भी जाता है कि सुरक्षाकर्मियों से भी मजबूत नक्सलियों के नेटवर्क होते हैं। उन्हें पता होता है कि सुरक्षाकर्मी अब अगला कौन सा कदम कब और कहां उठाने वाले हैं। नक्सली अपने नेटवर्क का इस्तेमाल करके छुपते हैं और इसके साथ ही मौका पाते ही अपने हमले को अंजाम देते हैं।

नक्सली अधिकतर पहचान में भी नहीं आते है जिसके कारण सुरक्षाकर्मियों को अपने ऑपरेशन में भारी परेशानी होती है। क्योंकि वे आम लोगों की तरह लोगों के बीच होते हैं। वे आदिवासी का वेशभूषा धारण कर आम लोगों के बीच या यूं कहें कि भीड़ का हिस्सा बन जाते हैं।
वे गोरिल्ला युद्ध में भी माहिर होते हैं और जवानों पर छुपकर हमले करते हैं।

छत्तीसगढ़, बिहार समेत देश के इन राज्यों में फैला है नक्सलवाद
70 के दशक में पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी से शुरू हुआ नक्सलवाद आज देश के कई राज्यों में अपना जड़ जमा चुका है। यह सरकार और देश के लिए उस घाव की तरह हो गया है जो मिटने का तो नाम नहीं लेता लेकिन रह-रह कर मवाद निकालता है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, देश के करीब 11 राज्यों में नक्लवाद का नेटवर्क है। इनमें बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा जैसे राज्य शामिल हैं जहां अधिकतर नक्सली हमले होते रहते हैं।
हालांकि, कई बार ऐसा भी देखा गया है कि सरकार के द्वारा अनुरोध करने पर कई नक्सलियों ने कई बार आत्मसमर्पण भी किया है। लेकिन इससे अन्य नक्सलियों पर कोई खास प्रभाव शायद नहीं पड़ पाता है जिसके कारण वे आम जीवन को छोड़कर नक्सली वाले जीवन को ज्यादा जीना पसंद करते हैं। हालांकि समय-समय पर सुरक्षाकर्मियों का इनके खिलाफ ऑपरेशन भी चलता रहता है, जिसमें कई नक्सली या तो पकड़े जाते हैं या फिर मारे जाते हैं। आपको बता दें कि पिछले कई सालों में अधिकतर नक्सली हमले छत्तीसगढ़ में हुए हैं।

छत्तीसगढ़ में कब-कब हुए नक्सली हमले?

  • 26 अप्रैल 2023:छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में नक्सली हमला। एक चालक समेत 10 डीआरजी जवान शहीद
  • अप्रैल 2021: बिजौर और सुकमा जिलों की सीमा पर स्थित टेराम जंगलों में नक्सलियों के साथ मुठभेड़ में 22 सुरक्षाकर्मी शहीद हो गए।
  • मार्च 2018: सुकमा के भेजाजी में नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ पुलिस के दो जवानों की हत्या कर दी।
  • 24 अप्रैल 2017: सुकमा में नक्सलियों के साथ मुठभेड़ में सीआरपीएफ के 24 जवान शहीद हो गए।
  • 12 मार्च 2017: नक्सलियों के साथ मुठभेड़ में सुकमा में सीआरपीएफ के 12 जवान शहीद हो गए।
  • 11 मार्च 2014: सुकमा में नक्सली हमले में 15 सुरक्षाकर्मी शहीद।
  • 28 फरवरी 2014: दंतेवाड़ा में एक नक्सली हमले में छह पुलिस कर्मियों की मौत हो गई।
  • 25 मई 2013: दरभा घाटी में माओवादी हमले में राज्य के पूर्व मंत्री महेंद्र कुमार सहित कांग्रेस पार्टी के 25 सदस्य मारे गए।
  • 29 जून 2010: नारायणपुर जिले में नक्सलियों ने सीआरपीएफ के 26 जवानों की हत्या कर दी।
  • 8 मई 2010: बीजापुर जिले में नक्सलियों ने एक बुलेट प्रूफ वाहन में विस्फोट किया जिसमें सीआरपीएफ के 8 जवान शहीद हो गए।
  • 6 अप्रैल 2010: दंतेवाड़ा जिले में घात लगाकर किए गए हमले में सीआरपीएफ के 75 जवान शहीद।
  • 4 सितंबर 2009: दंतेवाड़ा जिले में एक बारूदी सुरंग विस्फोट में छह कर्मियों की मौत।
  • 18 जुलाई 2009: बस्तर जिले में नक्सलियों ने ग्रामीणों की हत्या की।

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