इन दिनों में सुकमा में हुए नक्सली हमले को लेकर पूरे देश में शोक की लहर दौड़ रही है। शहीदों के परिवारों से लेकर पूरी सरकार तक गमगीन है। गृह मंत्रालय समेत पूरे नक्सल निरोधक तंत्र को भी इतने बड़े पैमाने पर नक्सलियों के फिर से संगठित होने की खबर तक नहीं थी। पिछले दो साल से भारी संख्या में नक्सलियों के आत्मसमर्पण से सरकार के हौसले बुलंद थे। गृहमंत्रालय के नक्सल संबंधी नीतिकार विश्वास करने लगे थे कि नक्सलवाद जैसी इस भयानक समस्या पर अब काबू पा लिया जा चुका है। मगर हाल ही में हुए हमले ने सरकार की नींद उड़ा दी है, सरकार अब इस समस्या पर लगाम लगाने के लिए अपनी कमर कस रही है।
दरअसल, सरकार यकीन कर चुकी थी कि नकस्लवाद नेतृत्व अब उम्रदराज हो चुका है, नक्सल प्रभावित इलाकों में सुरक्षा बलों की मजबूत पकड़ हो चुकी है। लेकिन फिर सुकमा के इस नकस्लवादी हमले ने समूचे देश को झकझोर कर रख दिया। लंबे समय बाद इतने बड़े हमले के विरुद्ध सरकार ने एक नई रणनीति बनाने की तैयारी की है।
गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने एलान किया है नक्सलवाद विरोधी रणनीति को अब नए सिरे से शुरु किया जाएगा औक नक्सल पॉलिसी की फिर से समीक्षा की जाएगी। इसी बाबत अब 8 मई को नक्सल प्रभावित राज्यों के प्रतिनिधियों की बैठक करने के निर्देश दिए गए हैं। बैठक में नक्सल मामले में केंद्र के सलाहकार विजय कुमार और सीआरपीएफ के कार्यवाहक महानिदेशक सुदीप लखटकिया भी शामिल होंगे जो कमियों की समीक्षा करेंगे और साथ ही नक्सलियों के खिलाफ जवाबी कार्रवाई के लिए जमीनी रणनीति तैयार करेंगे।
बता दें कि केंद्र की सरेंडर पॉलिसी के तहत दो साल में छत्तीसगढ़, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और झारखंड में करीब 1200 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया था, समर्पण करने वालों में ज्यादातर हथियार चलाने में निपुण नक्सली थे, जिनमें महिलाएं भी शामिल थी। जिसके बाद से ही नक्सलियों के लगातार कमजोर होने के इनपुट मिल रहे थे।