धर्म की राजनीति तभी होने लगती है जब राजनैतिक जीत में ‘जय श्री राम’ का नारा लग जाए और वह एक सद्भावना का स्वर न बनकर एक राजनैतिक स्वर बन जाए। यही अंतर है गांधी के ‘हे राम’ और भाजपा के ‘जय श्री राम’ में। बिहार में जदयू-बीजेपी की सरकार बन गई है और नीतीश कैबिनेट में दोनो ही पार्टियों के नेता शामिल हो चुके हैं। इस कैबिनेट में एक मात्र मुस्लिम मंत्री खुर्शीद अहमद ने कहा कि अगर मेरे जय ‘श्री राम’ का नारा लगाने से बिहार की जनता को फायदा होता है तो मुझे ‘जय श्रीराम’ बोलने में कोई हर्ज नहीं है। खुर्शीद अहमद जदयू के नेता हैं और उन्हें कैबिनेट में अल्पसंख्यक कल्याण और गन्ना उद्योग विभाग सौंपा गया है।
खुर्शीद अहमद ने कहा कि ‘बिहार के विकास और समरसता के लिए मैं ‘जय श्री राम’ बोलूंगा और मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं है। इसके चलते उनके ऊपर फतवा भी जारी हो गया है। मुफ्ती सुहैल अहमद कासमी ने फतवा जारी करते हुए उन्हें इस्लाम से खारिज और मुर्तद (विश्वास नहीं करने वाला) करार दिया है। इसपर खुर्शीद का कहना है कि मैं इमारत शरिया का सम्मान करता हूं। उन्हें फतवा जारी करने से पहले मेरा इरादा पूछना चाहिए था। मुझे डर क्यों होना चाहिए? हम सभी इंसान है और इस्लाम का कहना है कि किसी से नफरत न करो।
बता दें कि नीतीश मंत्रिमंडल में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) कोटे से 11, जनता दल (यूनाइटेड) से 14 और लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) से एक विधायक को कैबिनेट में जगह दी गई है। ‘जय श्री राम’ कहना गलत नहीं है लेकिन ईश्वर को भी अगर राजनैतिक लाभ या किसी मंशा से याद किया जाए, समस्या तब उत्पन्न होती है। राम नाम से राजनीति तो चमक जाएगी किंतु उस राजनीति से राम नाम धुंधला पड़ जाएगा।