जम्मू कश्मीर में भारत की सीमा को सुरक्षित रखने वाले सेना के जवान कश्मीर में कई विकट परिस्थितियों का सामना करते हैं। कभी आतंकवादी तो कभी बर्फ,कभी पत्थर तो कभी ग्रेनेड से जूझते आर्मी के जवान हर मौसम हर समय बिना किसी चीज की परवाह किये सरहद के साथ कठिन परिस्थितियों में नागरिकों की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान तक दे देते हैं लेकिन इस बार जो कश्मीर की तस्वीर आई है उसे देख कर हम कह सकते हैं कि आर्मी को आतंकवादियों के साथ कश्मीर के नागरिकों से भी खुद की रक्षा करनी पड़ती है।

kashmirकश्मीर में हाल में हुए चुनावों के दौरान का एक वीडियो वायरल हुआ है इस वीडियो में चुनाव ड्यूटी से लौट रहे सेना के जवानों को कुछ कश्मीरी युवक लात मारते दिख रहे हैं। इसके अलावा इस वीडियो में सेना के जवानों को थप्पड़ मारते,उनके हेलमेट छीनते युवा भी दिख रहे हैं। कश्मीर के यह भटके हुए युवा आज़ादी के नारे भी लगा रहे हैं। इस विडियो में सेना के जवानों से इतनी बदतमीज़ी करते युवाओं को तो देखा ही गया है लेकिन इन सब से बड़ी चीज जो सामने आई है वह है सेना के जवानों का धैर्य। हाथ में अत्याधुनिक हथियार और पूरा सुरक्षा कवच लेकिन बावजूद इसके जवानों ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और चुपचाप अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान कर गए।

देखें विडियो-

इस वीडियो के सामने आने के बाद हर किसी के मन में जो पहला सवाल है कि क्या अभी कुछ दिन पहले और 2014 में जब कश्मीर में भीषण बाढ़ आई थी तो सेना ने इन नागरिकों को इसलिए बचाया था कि वह सेना के जवानों को लात मार सकें? क्या नागरिकों को बचाने के लिए आतंकवादियों की गोली सहने वाले सेना के जवान इसलिए अपनी जान जोखिम में लिए ड्यूटी करते हैं? इन सब सवालों के बीच यह भी है कि सेना की पैलेट गन पर बोलने वाले इस घटना के बाद चुप क्यूँ हैं? इन पत्थरबाजों पर कारवाई कब होगी और सेना के जवानों को सुरक्षा नहीं तो आदेश कौन देगा? प्रश्न बहुत हैं लेकिन जवाब कम हैं। हालाँकि कश्मीर में जवानों के साथ यह कोई पहली घटना नहीं है लेकिन इन पर रोक कब और कैसे लगेगी यह विचारणीय है।

कश्मीर के मुद्दे पर बवाल के लिए पाकिस्तान के अलावा खुद भारत में बैठे फारुक अब्दुल्ला,प्रशांत भूषण और अन्य नेता भी कम जिम्मेदार नहीं हैं। बुरहान वानी का एनकाउंटर हो या आतंकवादियों के खिलाफ सेना का ऑपरेशन सवाल हमेशा सेना पर ही उठाये जाते हैं। कश्मीर के पत्थरबाज इन नेताओं को भटके हुए युवा लगते हैं। साथ ही यह कश्मीर की आज़ादी को समर्थन देते भी नज़र आते हैं लेकिन अगर इन्ही आतंकवाद समर्थकों की मौत सेना की गोली से हो जाए तो यह मानवाधिकार का राग अलापने लगते हैं। ऐसे में क्या यह कहना सही नहीं है कि कश्मीर के गुनाहगारों की  सज़ा हमारे जवानों को मिल रही है?

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