भारत पाम ऑयल का सबसे बड़ा खरीददार है और पर्यावरण बचाव के लिए वह इस मुद्दे पर एशिया का नेतृत्व कर सकता है। वह पर्यावरण संतुलन कायम रखने वालों से खरीद करने जैसे अहम कदम उठा सकता है। जिस तरह से दिल्ली में दीपावली के बाद पर्यावरण बुरी तरह प्रदूषित हुआ है। उसी तरह इंडोनेशिया, मलेशिया समेत दक्षिण एशिया में कई क्षेत्र पर्यावरण को ताक पर रखकर हो रहे पाम आयल उत्पादन की वजह से वायु प्रदूषण से त्रस्त हैं।

डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया की प्रमुख भावना ने कहा कि पर्यावरण और जैव विविधता का प्रभाव सिर्फ दक्षिण एशिया तक सीमित नहीं है। ऐसे में भारत के उपभोक्ता को जागरूक होना पड़ेगा। सरकार को भी पूरे एशिया का ख्याल रखते हुए बचाव के लिए खरीद में कदम उठाने होंगे। आरएसपीओ ने कहा कि भारत दुनिया में पाम आयल का सबसे बड़ा खरीदार है।

इस क्षेत्र में उसकी पहल और नेतृत्व पर्यावरण संरक्षण के अहम कदमों को अंजाम दे सकती है। पेरिस समझौते के बाद पर्यावरण के मुद्दे पर भारत संवेदनशील है और पूरा पाम आयल उत्पादन क्षेत्र भारत की ओर देख रहा है। उल्लेखनीय है कि भारत में पाम ऑयल का आयात गत वर्ष से कमजोर मांग के चलते घटा है। इसकी वजह घरेलू उद्योग जगत की मांग पर इसके आयात शुल्क में बढ़ोतरी की जा रही है। फिलहाल दक्षिण एशियाई देशों के उत्पादकों द्वारा दाम कम रखे जाने के बावजूद भारत में इसके आयात के बढ़ने की कोई उम्मीद नहीं है।

आयात घटने के बावजूद भारत पाम ऑयल का सबसे बड़ा खरीदार है। ऐसे में पर्यावरण बचाव संबंधी आरएसपीओ के मानक पाम आयल के उत्पादन क्षेत्र पर खर्च का भार बढ़ता है। वह इसके लिए दुनियाभर में उपभोक्ता जागरूकता अभियान चला रहा है, ताकि कीमतों में छिटपुट बढ़ोतरी का फायदा उत्पादकों को मिले और वह पर्यावरण संरक्षण के कदम उठाने में कोताही नहीं बरतें।

गौरतलब है कि पिछले साल नवंबर से इस साल के सितंबर तक कुल पाम ऑयल आयात 85,46,059 टन से घटकर 79,47,472 टन हो गया है, जबकि अन्य तेलों का आयात समान है। पाम आयल के दाम घटने के बावजूद इसके आयात नहीं बढ़ने की उम्मीद विशेषज्ञ जता चुके हैं। उल्लेखनीय है कि दुनिया में 2 फीसदी पॉम आयल भारत में पैदा होता है।

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