सुप्रीम कोर्ट ने 1995 के एक मामले की सुनवाई करते हुए भारत की असफल प्रेम कहानियों का वर्णन किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत में बहुत सारी महिलाएं अपनी मां-बाप की खुशी के लिए अपने प्यार का बलिदान दे देती है। कोर्ट ने कहा कि भारत में यह एक आम बात है। असफल प्रेम कहानी से ही संबंधित एक मामले में आरोपी प्रेमी को बरी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी की।

दरअसल, सन् 1995 में इस प्रेमी ने अपनी प्रेमिका के साथ दोनों के परिवार की मर्जी के खिलाफ शादी कर ली। शादी के कुछ दिनों के बाद ही दोनों ने आत्महत्या करने की कोशिश की। इस कोशिश में महिला की जान चली गई लेकिन व्यक्ति बच गया। व्यक्ति के जीवित बच जाने पर पुलिस ने उसके खिलाफ महिला की हत्या का आरोप दर्ज किया और उसे गिरफ्तार कर लिया। निचली अदालत ने आरोपी व्यक्ति को उम्र कैद की सजा सुनाई। बाद में राजस्थान हाईकोर्ट ने भी निचली अदालत के फैसले को बरकार रखा।

इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हो सकता है कि पहले महिला अपनी इच्छा ना होने के बावजूद मां-बाप की इच्छा मानने को राजी हो गई हो लेकिन ऐसा भी हो सकता है कि बाद में उसका मन बदल गया हो और उसने अपने प्रेमी से शादी कर ली हो।  घटनास्थल पर फूलमाला, चूड़ियां और सिंदूर देखे गए। इनसे ऐसा प्रतीत होता है कि बाद में उसका मन बदल गया।

इसी सुनवाई के बाद जस्टिस एके सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण की एक पीठ ने कहा, कि भारत में बेटियां अक्सर अपने माता-पिता की खुशी के लिए अपने प्यार का बलिदान दे देती है, हमारे देश में यह एक आम बात है। कोर्ट ने कहा कि पीड़ित आरोपी एक दूसरे से प्यार करते थे और लड़की के पिता ने निचली अदालत में कहा था कि उनका परिवार जाति अलग होने की वजह से दोनों की शादी के खिलाफ था। सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि परिकल्पना के आधार पर आपराधिक मामलों के फैसले नहीं किए जा सकते और उसने व्यक्ति को बरी करते हुए कहा कि पर्याप्त संदेह के बावजूद अभियोजन पक्ष उसका दोष सिद्ध करने में सक्षम नहीं रहा है।

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