सेनाध्यक्ष बिपिन रावत ढ़ाई मोर्चे पर युद्ध के लिए सेना के तैयार होने की बात कहते है… देश को भरोसा दिलाते हैं कि देश एक साथ चीन-पाकिस्तान और घरेलू मोर्च पर जंग के लिए तैयार है… लेकिन जो बताया जा रहा है क्या हकीकत भी वैसी ही है… क्या हमारी सेना सचमुच किसी भी हालात से निपटने के लिए तैयार है… क्या सेना की तैयारियां दुरूस्त है… क्या सेना के हथियार इतने आधुनिक हैं कि वो चीन और पाकिस्तान जैसे दुश्मनों को हथियार डालने के लिए मजबूर कर दें… हम इतने सारे सवाल इसलिए कर रहे है क्योंकि संसद की रक्षा समिति ने जो रिपोर्ट पेश की है वो सरकर की रक्षा तैयारियों पर सवाल खड़ी कर रही है…जहां पाकिस्तान और चीन अपनी-अपनी सेनाओं का तेजी से आधुनिकीकरण कर रहे हैं लेकिन भारतीय सेना पुराने हथियारों के भरोसे बैठी है… सेना के पास हथियारों की भारी कमी भी बनी हुई है… स्थिति ये है कि  सेना के 68% हथियार पुराने हैं… संसद की स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में इस पर गंभीर चिंता जाहिर की है … बीजेपी सांसद मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूरी की अध्यक्षता वाली समिति की मंगलवार को संसद में पेश रिपोर्ट में ये चिंता जाहिर की गई है… सेना के पास 24 फीसदी हथियार ही आधुनिक श्रेणी के हैं जबकि 68 फीसदी हथियार पुराने पड़ चुके है… जंग की स्थिति में जंग लगे ये हथियार भारत की सुरक्षा के लिए नाकाफी होंगे… माना हमारी सेना में दुनिया के सबसे साहसी सैनिक शामिल है… हमारे सैनिक देश की रक्षा करने के लिए निहत्थे भी दुश्मनों से निपटने का साहस रखते है… लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो ये है कि पुरानी तकनीक वाले इन हथियारों से हमारे जवान कब तक दुश्मनों का सामना कर सकेंगे… हैरत वाली बात तो ये हैं कि देश की सेना के पास महज 24 फीसदी हथियार ही आधुनिक श्रेणी के हैं और इनमें से महज 8 फीसदी हथियार ही बेहतरीन या स्टेट ऑफ आर्ट श्रेणी के हैं जबकि किसी सेना के लिए आदर्श स्थिति ये है कि पुराने हथियार और उपकरण एक तिहाई से ज्यादा न हो… एक तिहाई आधुनिक उपकरण हों और एक तिहाई स्टेट ऑफ आर्ट श्रेणी के हों… लेकिन भारतीय सेना के पास ऐसा कुछ भी नहीं जिसके भरोसे कहा जा सके कि हम ढाई मोर्चे पर जंग के लिए तैयार हैं… ऐसे ही हालात बने रहे है तो ढाई मोर्चा तो दूर, देश एक मोर्चा पर भी दुश्मनों का मुकाबला नहीं कर पाएगा है… ऐसी बातें हम डराने के लिए नहीं कह रहे हैं और ना ही हमारा मकसद सेना का मनोबल गिराने का है, बल्कि हम तो वक्त रहते सरकार को आगाह कराना चाहते हैं ताकि सरकार संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट की गंभीरता को समझे… सेना की मुश्किलों को समझे… सरकार समझे कि आखिर जंग लग चुके हथियारों से सेना कैसे जंग जीत सकती है…

अपनी रिपोर्ट में समिति ने सेना के आधुनिकीकरण के लिए पैसे की कमी का भी जिक्र किया है… समिति ने साल 2018-19 के दौरान सेना को आवंटित बजट की जांच की और इसे नाकाफी पाया… समिति ने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि इस बजट में सेना को आधुनिक बनाने के लिए कुल 21,338 करोड़ रुपये दिए गए हैं जबकि पहले से चल रही 125 परियोजना को जारी रखने के लिए उसे 29,033 करोड़ रुपये की दरकार हैयानि सेना को पास धन की जबर्दस्त कमी है… ऐसे हालात में सेना अपने आधुनिकीकरण के लिए कुछ भी नहीं कर सकती… ये स्थिति तब है जब भारत चीन और पाकिस्तान के दोहरे खतरे से जूझ रहा है…पाकिस्तान और चीन अपनी सेनाओं के आधुनिकीकरण का काम तेजी से कर रहा है… चीन लगातार अपनी रक्षा बजट को बड़ा कर रहा है…धीरे धीरे चीन की सैन्य ताकत अमेरिका के बराबर होती जा रही है… रक्षा विशेषज्ञों ने सरकार से कई दफा कहा है कि भारत का असली दुश्मन पाकिस्तान नहीं बल्कि चीन है फिर भी इस बजट में सेना को उम्मीद के मुताबिक बजट नहीं दिया गया… नए योजनाओं को तो छोड़िए भारतीय सेना के पास अपने मौजूदा कार्यक्रमों को जारी रखने के लिए भी बजट नहीं है… सेना पैसों के लिए तरस रही है…सेना के पास नए आधुनिक हथियार खरीदने के लिए पैसे नहीं है…दुश्मन अत्याधुनिक हथियारों से लैस है जबकि भारतीय सेना पुरानी हथियारों के भरोसे दुश्मनों से लोहा ले रही है…यही वजह है कि संसाद की समिति ने पठानकोट में आतंकी शिविर पर हमले, नियंत्रण रेखा पर पाक की बढ़ती फायरिंग और डोकलाम में चीन के आक्रामक रुख का जिक्र करते हुए कहा कि सेना को हर हाल में ज्यादा से ज्यादा संसाधनों और आधुनिक हथियारों की जरूरत है…समिति ने बजट को कम बताते हुए कहा कि सेना को मिला सिर्फ 14 फीसदी बजट ही आधुनिकीकरण के लिए उपलब्ध रहता है जबकि 63 फीसदी वेतन में चला जाता है20 फीसदी सामान्य रखरखाव पर खर्च होता है जबकि तीन फीसदी ढांचागत सेवाओं को स्थापित करने पर खर्च होता है लेकिन इस बार जो बजट सेना को दिया गया है वो आधुनिकीकरण के लिए जरूरी बजट से बेहद कम है…समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि सेना के आधुनिकीकरण का बजट कुल बजट का 22 से 25 फीसदी के बीच सुनिश्चित किया जाना चाहिए ऐसा नहीं है कि सेना में हथियारों के बारे में ये कोई पहली बार जताई गई चिंता है… इससे पहले CAG  की एक रिपोर्ट से खुलासा हुआ था कि भारतीय सेना गोलाबारूद की भारी कमी से जूझ रही है.… संसद में रखी गई नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक यानि CAG  की रिपोर्ट में बताया गया था कि कोई युद्ध छिड़ने की स्थिति में सेना के पास महज 10 दिन के लिए ही पर्याप्त गोलाबारूद है...संसद के सामने कैग की रिपोर्ट में कहा गया था कि कुल 152 तरह के गोला-बारूद में से महज 20% यानी 31 का ही स्टॉक संतोषजनक पाया गया, जबकि 61 तरह के गोला बारूद का स्टॉक चिंताजनक रूप से कम पाया गया…यहां गौर करने वाली बात ये है कि भारतीय सेना के पास कम से कम इतना गोला-बारूद होना चाहिए, जिससे वह 20 दिनों के किसी बड़े टकराव की स्थिति से निपट सके…. हालांकि इससे पहले सेना को 40 दिनों के जंग लड़ने लायक गोलाबारूद अपने वॉर वेस्टेज रिजर्व  में रखना होता था, जिसे 1999 में घटा कर 20 दिन कर दिया गया था… लेकिन आज हालात ये है कि सेना के पास 10 जिन तक जंग लड़ने के लिए भी गोला बारूद नहीं है… ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि अगर अभी जंग छिड़ जाए तो देश की स्थिति क्या होगी…ऐसे में जरूरी है कि सरकार सेना की जरूरत को समझे, देश की सुरक्षा तैयारियों की फिर से समीक्षा करे… और जरूरत के मुताबिक कारर्वाई करे

-एपीएन ब्यूरो

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