रायबरेली की राजनीतिक पहचान कांग्रेस के गढ़ के तौर पर की जाती है। कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष और यूपीए की संयोजक सोनिया गांधी यहां से सांसद है।  सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली में बच्चों को शिक्षा का कितना अधिकार मिल पाया है ये जानने के लिए हम सबसे पहले रायबरेली नगर क्षेत्र के प्राथमिक स्कूल रतापुर पहुंचे। बाहर से देखने पर रतापुर के प्राथमिक स्कूल की इमारत ठीक ठाक नजर आती है। रंगरोगन भी ठीक है लेकिन जब हम क्लास में दाखिल हुए तो शिक्षा व्यवस्था में अव्यवस्था की पोल खुल गई। जब हम स्कूल पहुंचे तो 8 बज कर 10 मिनट हो रहा था लेकिन स्कूल में दो बच्चे थे और टीचर नदारद थी।

सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र में शिक्षा की बदहाली का आलम ये है कि महज एक टीचर के भरोसे ये स्कूल चल रहा है। एकमात्र शिक्षक को बच्चों की पढ़ाई के साथ-साथ मिड डे मिल समेत दूसरी व्यवस्थाओं को संभालना पड़ता है। जब हम स्कूल पहुंचे तो पता चला कि मैडम मिड डे मिल के लिए सब्जी लाने गई है। मैडम स्कूल में नहीं थी और दो बच्चे क्लास में बैठ कर मैडम का इंतजार कर रहे थे। इस बीच चार और बच्चे स्कूल पहुंच गए इस तरह से स्कूल में कुल बच्चों की संख्या 6 हो गई। वैसे इस स्कूल के रजिस्टर में 59 बच्चों का नाम दर्ज है लेकिन जब शिक्षा का हाल ऐसा होगा तो लाजिमी है कि बच्चे यहां आना नहीं चाहेंगे।

ये अजीब विडंबना है कि स्कूल में एक ही शिक्षक की नियुक्ति की गई है और उनके जिम्मे पढ़ाई ही नहीं इससे इतर भी कई जिम्मेदारियों को थोप दिया गया है। रतापुर प्राथमिक स्कूल में एक से लेकर पांच क्लास तक के बच्चे पढ़ते है लेकिन पांच क्लास के बच्चों को पढ़ाने के लिए एक शिक्षक। ऐसे में अब एक अकेली टीचर सभी क्लास के बच्चों को कैसे पढ़ाती होंगी समझा जा सकता है। इतना ही नहीं स्कूल में बच्चों के बैठने के लिए बेंच और डेस्क नहीं है। सर्दी, गर्मी हो या बरसात, सभी मौसमों में बच्चे इसी तरह से जमीन में बैठ कर पढ़ाई करते हैं।

हाल ये है कि आधा सत्र बीत जाने के बावजूद अभी तक बच्चों को बैग और पूरी किताबें भी नहीं मिल सकी है। स्कूल में मुसीबत इतने भर से खत्म नहीं होती, स्कूल में बिजली कनेक्शन भी नहीं है। बिना बिजली और पंखे के ही बच्चे स्कूल में पढ़ने को मजबूर है। इसके अलावा स्कूल के हैंडपंप का पानी भी पीने योग्य नहीं है। कुल मिला कर देखे तो सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली के प्राथमिक स्कूल रतापुर में अव्यवस्था का अंबार लगा है। जब स्कूलों में बच्चों को बुनियादी सुविधाएं ही नहीं मिलेगी तो वहां बच्चे आखिर कैसे पढें और कैसे बढ़ें, ये बड़ा सवाल है।

एपीएन ब्यूरो

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