धर्मांतरण की चिंगारी सिर्फ भारत में ही नहीं दूसरे देशों में भी लगी है। लेकिन चिंगारी कहीं की भी हो न्यायपालिका हर चिंगारी को बुझाने का काम करती है। कुछ ऐसा ही हुआ मेलिशिया में। मलेशिया में एक हिंदू महिला ने अपने बच्चों के धर्मांतरण की कानूनी लड़ाई जीत ली है। मलेशिया की सर्वोच्च अदालत ने सोमवार को सर्वसम्मति से महिला के पक्ष में फैसला सुनाया। अदालत ने ऐतिहासिक फैसले में कहा कि नाबालिग के धर्मांतरण के लिए माता-पिता यानी दोनों अभिभावकों की सहमति जरूरी है। अदालत ने एक हिंदू महिला के पक्ष में फैसला सुनाते हुए यह कहा कि जिसके पूर्व पति ने उनके 3 बच्चों को उसकी सहमति के बिना मुस्लिम बना दिया था। यह उचित नहीं है। महिला की सहमति आवश्यक है और उसके सहमति के बिना बच्चों का धर्मांतरण नहीं हो सकता।

दरअसल, महिला के पूर्व पति ने उसे बताए बगैर ही उसके तीन बच्चों को इस्लाम धर्म कबूल करा दिया था। एम. इंदिरा गांधी को 9 साल की कानूनी लड़ाई के बाद यह कामयाबी मिली है। उनके पूर्व पति ने 2009 में इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था और अपने तीनों बच्चों को भी मुसलमान बना दिया था। वह 11 महीने की बेटी को भी अपने साथ ले गया था। बाद में कानूनी लड़ाई में इंदिरा को बच्चों की कस्टडी मिल गई थी। इसके बाद उन्होंने बच्चों के धर्मातरण को मलेशिया के सिविल कोर्ट में चुनौती दी थी। इस समय इंदिरा के तीनों बच्चों की उम्र 20 वर्ष, 19 वर्ष और 9 वर्ष है।

बता दें कि धर्मांतरण के मामले में निचली अदालत ने महिला के पक्ष में फैसला सुनाया लेकिन लेकिन अपील अदालत ने यह कहते हुए फैसला पलट दिया था कि सिविल कोर्ट को इस्लामिक धर्मातरण के मामलों की सुनवाई करने का अधिकार नहीं है। इंदिरा ने इस फैसले के खिलाफ सर्वोच्च अदालत में अपील की थी। जहां उसे जीत मिली।बच्चों के धर्मांतरण की कानूनी लड़ाई

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