सरकारी आवास पर बड़ी टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अहम बात कही है। कोर्ट ने कहा कि सरकारी आवास परोपकार या बख्शीश में देने के लिए नहीं है। कश्मीर मूल के और खुफिया विभाग से रिटायर्ड अधिकारी को सरकारी आवास खाली करने का आदेश देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह बात कही है।

बता दें कि साल 2006 में रिटायर होने के बाद भी कश्मीर मूल का और खुफिया विभाग का अधिकार सरकारी आवास में रह रहा था। अधिकारी का कहना था कि जम्मू कश्मीर में जैसे ही हालात समान्य हो जाते हैं वह आवास को छोड़ देगा। उसे पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने सरकारी आवास में रहने की अनुमति दी थी, लेकिन केंद्र ने इस आदेश के खिलाफ अपील कर दी, जिसे स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट का आदेश रद्द कर किया गया है।

जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस एएस बोपन्ना की बेंच ने अधिकारी को आदेश देते हुए कहा कि 31 अक्तूबर तक यह रिटायर्ड अधिकारी फरीदाबाद स्थित सरकारी आवास खाली कर उसका कब्जा सरकार को सौंपे।

साथ ही रिटायर होकर भी सरकारी आवास में रह रहे कर्मचारियों व अधिकारियों पर कार्रवाई करते हुए इसकी रिपोर्ट 15 नवंबर तक देने के लिए केंद्र सरकार से कहा गया है। कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कि किसी को सदा के लिए सरकारी आवास नहीं दिए जा सकते।

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अक्तूबर माह 2006 में रिटायर होने के बाद अधिकारी ने अपने विभाग में आवेदन कर कहा कि उसे एक साल के लिए रहने दें। फिर साल 2007 में दूसरा आवेदन पत्र लिख कहा कि उसे कुछ किराया वसूल कर यहां पर रहने दिया जाए। उसे आवास खाली करने के नोटिस दिए गए, जिसे न मानने पर उसे निकालने का निर्णय हुआ। वह दिल्ली की एक जिला अदालत से स्टे ले आया। इसे दिल्ली अदालत के क्षेत्राधिकार का मामला न मानते हुए विभाग ने आपत्ति की, जिस पर व्यक्ति ने मामला दिल्ली से वापस लेकर फरीदाबाद अदालत में दायर किया, जहां वह खारिज हो गया। इस बार उसने पंजाब और चंडीगढ़ हाईकोर्ट में अपील की, वह भी सिंगल जज ने खारिज कर दी।

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