सेना प्रमुख बिपिन रावत का कहना है कि महिलाएं अभी सीमा पर जंग के लिए भेजे जाने के लिए तैयार नहीं हैं। इसका कारण बताते हुए उन्होंने कहा कि उन पर बच्चों की जिम्मेदारी होती है और वह फ्रंटलाइन में कपड़े जेंच करने में असहज महसूस करेंगी। वह हमेशा साथी जवानों पर ताक-झांक का आरोप लगाएंगी। जनरल रावत ने कहा कि एक वक्त वह युद्ध की भूमिका में महिलाओं को भेजने की पेशकश पर तैयार थे, लेकिन फिर लगा कि ज्यादातर जवान ग्रामीण क्षेत्रों से आते हैं और वह महिला अधिकारियों के ऑडर स्वीकार करने में अहसज महसूस कर सकते हैं।

सेना प्रमुख ने कहा कि सेना कमांडिंग ऑफिसर को इतनी लंबी छुट्टी नहीं दे सकती, क्योंकि वह छह महीने तक अपनी इकाई नहीं छोड़ सकती है। उसकी छुट्टी पर विवाद खड़ा हो सकता है।हमारे पास इंजीनियर के तौर पर महिला अधिकारी हैं। वे खनन और कागजी कार्रवाई का काम कर रही हैं। वायु रक्षा में वे सेना के हथियार प्रणालियों का प्रबंधन कर रही हैं। हमने महिलाओं को फ्रंटलाइन में नहीं रखा है, क्योंकि अभी हम कश्मीर में प्रॉक्सी वॉर में व्यस्त है।

बता दें, कि अगर किसी बटालियन की अधिकारी महिला है। तो आपको एक ऑपरेशन के लिए जाना है। कंपनी कमांडर का नेतृत्व करना है। ऑपरेशन में आपको आतंकियों से निपटना होगा। वहां मुठभेड़ होगी और इस दौरान कमांडिंग अधिकारी मर जाता है। महिला अधिकारी के साथ भी ऐसी दुर्घटना हो सकती है। उसकी मौत भी हो सकती है। क्योंकि आतंकियों से निपटना बहुत मुश्किल होता है इसलिए हम महिलाओं को सेना में भेजने के लिए तैयार नहीं है।

उन्होंने एक और तर्क दिया कि कश्मीर में पाकिस्तान के साथ लगातार झड़पें होती हैं और कई बार हमारे सैनिक पाकिस्तान द्वारा पकड़े गए हैं। ऐसे में अगर कोई महिला जवान पाकिस्तान के हाथ लगता है तो हमारे ऊपर कहीं अधिक दबाव होगा।

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