बायो जेटफ्यूल से हवाई जहाज उड़ाने वाले देशों की सूची में आज भारत भी शामिल हो गया। बॉयोफ्यूल वाले स्पाइसजेट का विमान जब देहरादून से उड़ान भरकर दिल्ली पहुंचा तो इसके स्वागत के लिए सरकार के कई मंत्री दिल्ली एयरपोर्ट के टर्मिनल-2 पर मौजूद थे। ये भारत में बायोफ्यूल से पहली फ्लाइट थी।
अभी तक अमेरिका और आस्ट्रेलिया जैसे विकसित देशों में यह प्रयोग सफल रहा है। बायो जेटफ्यूल जट्रोफा यानि रतनजोत के बीज से बना है। विमान का स्वागत करने के लिए केंद्रीय मंत्री डॉ. हर्षवर्धन, नितिन गडकरी, धर्मेंद्र प्रधान और सुरेश प्रभु मौजूद थे। विमान में 25% बायो फ्यूल के साथ एयर टर्बाइन फ्यूल की 75% मात्रा मिलाई गई थी। अगर विमान में बायोफ्यूल इस्तेमाल होने लगा तो ना सिर्फ इससे पर्यावरण को साफ रखने में मदद मिलेगी बल्कि उड़ान की लागत में भी बीस फीसदी तक कमी आएगी।
विमान में 25% बायो फ्यूल के साथ एयर टर्बाइन फ्यूल की 75% मात्रा मिलाई गई थी। बायो फ्यूल जट्रोफा (रतनजोत) के बीज से बना है। अमेरिका- ऑस्ट्रेलिया जैसे विकसित देशों में यह प्रयोग सफल रहा है। इससे उड़ान की लागत में 20% तक कमी आएगी।
दरअसल वर्ष 2012 में पेट्रोलियम विज्ञानी अनिल सिन्हा ने जट्रोफा के बीज के कच्चे तेल से बायोफ्यूल बनाने की टेक्नोलॉजी का पेटेंट कराया। इस फ्लाइट में इस्तेमाल हो रहा फ्यूल उन्हीं की टेक्नोलॉजी व निगरानी में बना है। इससे पहले इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोलियम (आईआईपी) ने कनाडा की मदद से वहां बायोफ्यूल से उड़ान का सफल प्रयोग किया था, लेकिन इस बार भारत ने अपने दम पर सफलतापूर्वक प्रयोग पूरा किया। देहरादून से दिल्ली तक उड़ान भरनेवाले 78 सीटर स्पाइसजेट के विमान में आईआईपी के निदेशक अंजन रे, केटालिसिस डिविजन की प्रमुख अंशु नानौती, छत्तीसगढ़ बायोफ्यूल डेवलपमेंट अथॉरिटी के प्रोजेक्ट अफसर सुमित सरकार समेत प्रोजेक्ट से जुड़े तमाम अफसर मौजूद थे।
आज की उड़ान के लिए स्पाइसजेट को मनाने में भी वैज्ञानिको को काफी मेहनत करनी पड़ी। 2009 में किंगफिशर ने इस दिशा में दिलचस्पी दिखाई, लेकिन अपने घाटों की वजह से वह पीछे हट गई। फिर जेट एयरवेज सामने आई। उसके बाद एयर इंडिया को तैयार करने की कोशिश की गई लेकिन बात नहीं बनी। इंडिगो ने भी दिलचस्पी दिखाई, लेकिन प्रोजेक्ट को आगे नहीं बढ़ाया। आखिर में स्पाइसजेट तैयार हुई। उसके पास उसी इंजन के प्लेन हैं, जिनमें दूसरे देशों में बायोफ्यूल का सफल प्रयोग हो चुका है।
जिस बायोफ्यूल का इस्तेमाल आज की उड़ान में किया गया वह पूरी तरह से इंडियन इस्टीच्यूट ऑफ पेट्रोलियम के लैब में तैयार किया गया था। लैब की क्षमता एक घंटे में 4 लीटर बायोफ्यूल बनाने की है। इसके लिए छत्तीसगढ़ में 500 किसानों से जट्रोफा के दो टन बीज लिए गए, जिनसे 400 लीटर फ्यूल बना। इस पर डेढ़ महीने तक 20 लोग दिन-रात काम करते रहे। 300 लीटर बायोफ्यूल के साथ 900 लीटर एटीएफ विमान के राइट विंग में भरा गया। लेफ्ट विंग में 1200 लीटर एटीएफ इमरजेंसी के लिए रखा गया था।
बायोफ्यूल इस्तेमाल होने लगा तो हर साल 4000 टन कार्बन डाई ऑक्साइड एमिशन की बचत होगी। ऑपरेटिंग लागत भी 17% से 20% तक कम हो जाएगी। वैसे भी भारत में बायोफ्यूल का आयात तेजी से बढ़ रहा है। 2013 में 38 करोड़ लीटर बायोफ्यूल की सप्लाई हुई, जो 2017 में 141 करोड़ लीटर तक पहुंच चुकी थी। कुल कार्बन डाई ऑक्साइड एमिशन में एयर ट्रैवल की भूमिका 2.5% है, जो अगले 30 साल में चार गुना तक बढ़ सकती है। बायोफ्यूल इसी एमिशन पर काबू रख सकता है।
देश में खेती के लिए 190 मिलियन हेक्टेयर जमीन उपलब्ध है, जबकि सिंचाई सिर्फ 80 मिलियन हेक्टेयर जमीन पर हो रही है। इसमें 40 मिलियन हेक्टेयर जमीन पर साल में दो फसलें होती हैं। बाकी 40 मिलियन हेक्टेयर जमीन वाले किसानों के पास बायोफ्यूल के लिए बीज तैयार करने का विकल्प हैं।
एपीएन ब्यूरो