ग्राहक और दुकानदार का रिश्ता बेहद संवेदनशील होता है। भरोसे पर टिका यह रिश्ता अगर टूटता है तो बिल्कुल बिखर जाता  है। आज बेशक ग्राहक अगर किसी उत्पाद की गुणवत्ता से संतुष्ट नहीं होता तो उसके पास शिकायत करने के कई विकल्प हैं।  वह कंज्यूमर कोर्ट तक जा सकता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि व्यापारी और ग्राहक का रिश्ता कितना पुराना है ?  इस रिश्ते का एक प्रमाण मेसोपोटामिया सभ्यता से जुड़ा मिला है। इस रिश्ते से जुड़े प्रमाण मिलने के बाद एक बात और साफ हुई है कि अगर कोई ग्राहक खरीदी गई किसी वस्तु से संतुष्ट नहीं होता था तो वह शिलालेख तक गड़वा देता था, ताकि दूसरे लोग नुकसान से बच सके। इतिहासकार इसे दुनिया में किसी ग्राहक की दुकानदार से शिकायत का सबसे पुराना प्रमाण भी मान रहा है।

मेसोपोटामिया सभ्यता (वर्तमान इराक) के उर शहर (वर्तमान में तेल-अल-मुकैय्यर) से मिले एक शिलालेख में ग्राहक ने लिखा था कि व्यापारी ने जिस तरह के तांबे के बारे में बताया था, वैसा दिया नहीं। शिलालेख 1750 ईसवी पूर्व (करीब 3800 साल पुराना) का है। फिलहाल इसे लंदन के ब्रिटिश म्यूजियम में रखा गया है।

शिलालेख के मुताबिक, नानी नाम के आदमी ने आ-नासिर नामक व्यापारी को लिखी शिकायत में कहा कि उसे न केवल खराब गुणवत्ता का तांबा दिया गया, बल्कि उसे पहुंचाने में देरी भी की गई। अकादियन भाषा में लिखी गई इस शिकायत की लिपि कीलाकार है, जो लेखन शैली का सबसे शुरुआती रूप माना जाता है।

‘अपना तांबा वापस नहीं ले सकते तो कोई बात नहीं’ : नानी ने अपने संदेश में लिखा, “जब तुम मेरे पास आए थे तो तुमने मुझे अच्छी गुणवत्ता वाली तांबे की सिल्लियां देने को कहा था। लेकिन तुम्हारी सिल्लियां वैसी नहीं निकलीं, जैसा तुमने वादा किया था। अगर तुम उन्हें ले जाना चाहो तो ले जाओ। अगर नहीं ले जाना चाहते तो कोई बात नहीं। आखिर तुम मुझसे क्या ले गए। लेकिन इसी तरह तुम किसी और को भी धोखा दोगे। मैंने कुछ सज्जन लोगों को कई बार तुम्हारे पास पैसा लेने के लिए भेजा लेकिन हर बार तुमने उन्हें खाली हाथ ही लौटा दिया। क्या कोई ऐसा व्यापारी है जिसका तेल्मुन से व्यापार हो और वह बुरा बर्ताव करे। शायद तुम ऐसे अकेले हो जिसने मेरे संदेशवाहक के साथ भी बुरा व्यवहार किया।

उसने आगे लिखा था कि तुम भी अपनी बात रखने के लिए आजाद हो, मैं तुम्हारी ओर से राजमहल को 1080 पाउंड तांबा दे चुका हूं।” नानी ने अपने संदेश में चुनौती देते हुए कहा, “तुमने तांबे के लिए मुझसे ऐसा बर्ताव कैसे किया? तुम मुझसे जो पैसे ले गए हो, उसे लौटाना पड़ेगा। मुझे किसी भी रूप में तुम्हारा तांबा नहीं चाहिए। अब जो भी तांबा मुझे लेना होगा वो मैं अपने घर में खुद पसंद करूंगा। तांबा पसंद नहीं आया तो उसे तुरंत वापस भी कर दूंगा।”

सिंधु घाटी सभ्यता के समकालीन था मेसोपोटामिया : जिस समय भारत में सिंधु घाटी (हड़प्पा) की सभ्यता थी, उसी दौरान इराक में मेसोपोटामिया और सुमेर की सभ्यता फल-फूल रही थीं। सिंधु घाटी की सभ्यता का काल 2350 ईसवी पूर्व से 1750 ईसवी पूर्व का माना जाता है। सिंधु घाटी की सभ्यता कांस्ययुगीन थी। यानी इन लोगों ने तांबा और टिन मिलाकर कांसा बनाने की कला सीख ली थी। बाकी सारी समकालीन सभ्यताओं में तांबा ही प्रचलन में था।

ब्यूरो रिपोर्ट, एपीएन

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