किसानों की खुदकुशी का गंभीर मसला सुरसा की तरह मुंह खोले खड़ा है। सरकार की तमाम कोशिशों और पहल के बावजूद किसान मौत के फंदे में झूलने के लिए मजबूर हैं। हाड़तोड़ मेहनत करके अनाज उगा कर दूसरे को निवाला देने वाला अन्नदाता खुद दाने दाने को तरस रहा है। कर्ज की मार किसान की कमर तोड़ रहा है।और वह मौत को गले लगा रहा है।

कृषि और इससे जुड़ी हुई गतिविधियों पर देश की करीब आधी आबादी टिकी हुई है। लेकिन जीडीपी में इसकी हिस्सेदारी 17 फीसदी से थोड़ी ज्यादा है। जो काफी कम है। किसानों के आत्महत्या के आंकडे दिल दहला देने वाले हैं।

हालात इतने खराब हैं कि देश में 12,000 किसान हर साल आत्महत्या करते हैं। NATIONAL CRIME RECORDS BUREA के आंकड़ों के मुताबिक हर रोज करीब 24 किसान आत्महत्या कर रहे हैं। यानि कि हर आधे घंटे में एक किसान मौत के फंदे में लटक रहा है। हर साल तकरीबन 12 हजार किसान आत्महत्या करते हैं।

NATIONAL CRIME RECORDS BUREA के आंकड़ों के मुताबिक पिछले 22 सालों में देश भर में तकरीबन सवा तीन लाख से ज़्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं। देश में साल 2014 से 2016 तक, तीन वर्षों के दौरान ऋण, दिवालियापन और अन्य कारणों से क़रीब 36 हज़ार किसानों और कृषि श्रमिकों ने आत्महत्या की है। 1985 और 2011 के बीच 17 सालों में 7 लाख, 50 हजार, 830  किसानों ने आत्महत्या की है

भारत के कृषि मानसून पर निर्भर है। भारत के 52 फीसदी खेतों में सिंचाई की सुविधा नहीं है। फसल अच्छी हो या बुरी किसान दरिद्र ही रहता है। भारतीय किसानों के लिए हालात और ज्यादा मुश्किल भरे होते जा रहे हैं। अगर किसान कम उपज पैदा करता है तो उसके लिए मुश्किल है, अगर पैदावार ज्यादा होती है तो किसान के लिए मुश्किल है। यह एक तरह से जुआ होता है जिसमें किसान फसल तो बोते हैं और दिन-रात मेहनत करते हैं, लेकिन इसके बाद भी ऐसे तमाम फैक्टर होते हैं जिन पर उनका कोई नियंत्रण नहीं होता है।

किसान महाजनों से या बैंकों से खेती के लिए पैसे उधार लेते हैं। कड़ी मेहनत के बाद भी किसान को नहीं पता होता कि उसकी फसल कैसी होगी, फसल बेचने से उसके आर्थिक हालात में कोई सुधार होगा या नहीं और वह लिए गए कर्ज को चुका भी पाएगा या नहीं. कर्ज के जाल में फंसे किसानों के पास इससे निकलने का कोई चारा नहीं होता।

आर्थिक मुश्किलों में जकड़े किसान आत्महत्या का सहारा लेने लगते हैं।किसानों के आत्महत्या करने के कारण कई सारे है। सिंचाई के बजाय मौसमी बारिश पर निर्भरता, सूदखोरों से बेहद ज्यादा दरों पर कर्ज लेना, फसल का उचित दाम नहीं मिलना, मंडियों में बिचौलियों का वर्चस्व, घटता उत्पादन, छोटे छोटे जमीन के टुकड़ों में खेती करना, बिजली की कमी, गिरता भूजल स्तर,  समय पर खाद, बीज नहीं मिलना

देश में 52 प्रतिशत कृषक परिवारों के क़र्ज़दार होने का अनुमान है और प्रति कृषि परिवार पर बकाया औसत क़र्ज़ 47,000 रुपये है। पिछले 10 वर्षों में 70 लाख किसानों ने खेती करना बंद कर दिया खेती धीरे-धीरे घाटे का सौदा होती जा रही है। बिजली के बिगड़ते हाल, बीज का न मिलना, कर्ज का दवाब, लागत का बढ़ना और सरकार की ओर से न्यूनतम सर्मथन मूल्य का न मिलना आदि यक्ष प्रष्न बनकर उभरे हैं। किसान कर्ज के फंदे में फंसा कराह रहा है।

ब्यूरो रिपोर्ट, एपीएन

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